________________
४२ ]
पश्चिमी भारत की यात्रा
पूर्ण मामला था। काबा राजधानी से पश्चिम की ओर दस मील की दूरी पर रहने वाली एक विशाल बिरादरी है। इनके दो आदमियों को सलूम्बर सरदार के एक सामन्त ने निर्दयता से मार डाला और उसने यह कार्य दिन-दहाड़े नगर के परकोटे के अन्दर सार्वजनिक कुए पर किया, मानों ऐसा कर के उसने सार्वभौम स्वामी (राणा) की सत्ता को चुनौती दी हो। इस प्रश्न पर 'सरना' या शरण का एक कठिन विषय उपस्थित हो गया था और वह भी मेवाड़ के प्रमुख सरदार के विरुद्ध । परन्तु अब दो में से एक ही रास्ता अपनाने को रह गया था; या तो राणाजी द्वारा की हुई सुरक्षा की प्रतिज्ञा और अपने प्रतिनिधि द्वारा ब्रिटिश सरकार को दिया हुआ भरोसा एक ओर रख दिया जाय या सलूम्बर सरदार के 'सरना' (शरण) के अधिकार की अवहेलना की जाय । अब संशय या दुविधा की कोई बात नहीं रह गई थी। तुरंत ही खोज शुरू हुई परंतु कोई फल न निकला। रात के अंधेरे में अपराधी शहर से बच निकला परंतु छुपने की लाख कोशिश करने पर भी मैंने सलूम्बर की सीमा में कितनी ही दौड़ें लगा कर उसे ढूंढ निकाला। मैंने सरदार सलूम्बर के राव को बुलाया और दोनों बातों में से एक को चुनने के लिए कहा कि या तो वह अपने मालिक (राणा) की अप्रसन्नता और हमारी मित्रता टूटने के परिणाम को भुगतने के लिए तैयार रहे अथवा हत्यारे की शरण तोड़ दे (Sirna toorna) और उसको कानून के हाथों में इस तरह सौंप दे कि जिससे उसकी भावनाओं को कम से कम ठेस लगे अथवा उन मान्यताओं को, जिन्हें वह अच्छी तरह जानता था कि मैं उनका कितना सम्मान करता था, कम से कम आघात पहुँचे। उसने कहा कि वह अपनी जागीर छोड़कर बनारस चला जायगा, जैसा कि पहले उसके किसी पूर्वज ने जमीन की अपेक्षा इज्जत को बड़ी समझ कर किया था और वहां पर घोड़ों के कोड़े बना कर जीवन का निर्वाह कर लेगा क्योंकि उस शरणागत को सौंपने से तो अपने भाई-बन्धुओं में ही उसका 'काला मुंह' हो जावेगा। इस तरह की बहत सी बातें, पौरुषपूर्ण प्रतिवाद एवं इस कृत्य के बारे में पहले से जानकारी अथवा इसमें साजिश होने से शपथपूर्ण इनकार करते हुए उसने स्वीकार किया कि वह अपने नौकर को वही सज़ा देगा जिसके लिए उसका स्वामी (राणा) आज्ञा देगा। बातचीत एक समझौते के साथ समाप्त हुई कि अपराधी को सलम्बर से निकाल दिया जायगा और अन्यत्र शरण लेने के लिए कह दिया जायगा; जब वह दूसरी जगह शरण लेने की तलाश में निकलेगा तब बीच ही में राणा के आदमी उसे धर पकड़ेंगे । उसकी मान-रक्षा की यह तरकीब तय हो जाने पर अपराधी को राजधानी में लाया गया। परन्तु.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org