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प्रकरण - ३, भीलों का रहन-सहन
[ ३५ नहीं है कि वे भक्त भी, चाहे वे (Celtic Belenus) कॅलिटक बेलिनू' हों अथवा (Hindu Bal) हिन्दू बाल हों, अपने देवताओं के इस भोजन में स्वयं भी भाग लेते थे यह सत्य है कि हम पाशविक अघोरी को लेकर आज भी नरभक्षण का उदाहरण दे सकते हैं, परन्तु यह तो नियम का एक अपवाद मात्र होगा। फिर भी, यद्यपि मानव की इस निम्नतम अवस्था का चाहे प्रमाण न मिले, हम यह सन्देह किए विना नहीं रह सकते कि इन जंगलों में रहने वाले नीचतम लोग, जिनका पेट मल-भक्षी गीदड़, विषभरी छिपकलो और अधसड़े दुर्गन्धयुक्त गोमांस का विरोध नहीं करता, कभी इनके बदले में मानव-शरीर के किसी अंश का उपयोग करने में भी अधिक आपत्ति शील रहे होंगे।
हिन्दू-परम्परा की विशद शृङ्खला में ऐसे किसी भी समय का अनुसंधान नहीं किया जा सका है जब भारतवासी अग्नितत्त्व और उसके घरेलू उपयोगों से अपरिचित रहे हों; फिर भी, उन्होंने कभी इसका आविष्कार किया ही होगा जैसा कि पृथ्वी पर बसने वाली अन्य जातियों ने किया। यह कौन कल्पना करेगा कि अग्नि भी, जिससे प्रकृति भरी पड़ी है, एक आविष्कार है। चाहे आकाश में चमकने वाली बिजली, ज्वालामुखी (जिसका शब्दार्थ ज्वाला का मुख है), जो पृथ्वी का कलेजा फाड़ देते हैं अथवा वे अनगिनती सीताकुण्ड (गरम पानी के कुए) जो धरातल पर फैले हुए हैं और चाहे कोलम्बस की अण्डे वाली कहानी हमारे दिमाग में आवे, परन्तु जब हम इस विषय पर विचार करते हैं तो
".........प्राप्त होने पर यह इतनी प्रासान है, ___ जब अप्राप्त थी तो बहुतों ने सोचा था कि यह असम्भव वस्तु है।" ऐसी अग्नि को प्राप्त करने का कृत्रिम तरीका भी एक आविष्कार ही था और वह बीजालु फलों का भोजन करने वालों के लिए तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण था, इसमें सन्देह नहीं है। प्रत्यक्ष रूप से इस अत्यावश्यक तत्त्व का उपयोग किए बिना रहने वाली जातियों का प्रमाण ढूंढ़ने के लिए हमें प्लिनी (Pliny)
• (Celtic Belenus) कैल्टिक बेलिन-पाल्प पर्वत के उत्तर में बसने वाली जाति ।
प्राचीन लेखकों ने कैल्ट जाति के लोगों को लम्बे, नीली आँखों और सुन्दर बालों वाले चित्रित किया है। ताम्रयुग में ये लोग दक्षिण में गॉल, स्पेन, इटली, ग्रीस और एशिया
माइनर की ओर बढ़े थे।-N. S. E. p. 250, २ (Pliny) प्लिनी, (२३-७६ ई०) यह इटली में कोमो (Conno) नामक स्थान में पैदा हुअा था। बहुत विद्वान् था। इसके लिखे अनेक ग्रंथों में से अब केवल एक (Historia Naturalis) 'हिस्टोरिया नैचुरैलिस' नामक पुस्तक ही प्राप्त है जो ३७ भागों में है। यह पुस्तक प्राकृतिक विज्ञान का विश्वकोश मानी जाती है। इस विद्वान् ने अग्नि के आविकार और आदिम जातियों द्वारा उसके विविध उपयोगों पर विस्तार से विवेचन किया है।
-Webster's Biographical Dictionary, 1959, p. 1193
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