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________________ प्रकरण - ३; भीलों का रहन-सहन [ ३३ आँखों के नीचे है तब तक तो अतिथि-सत्कार की रीति पूरी की जावे और घर की छत से अच्छी-खासी दूर चले जाने पर उसी अपने शिकार को लटने में किसी प्रकार का संकोच न किया जाय । अमेरिका के एक इतिहासकार का मत है कि "जो जातियां शिकार पर निर्भर रहती हैं वे प्रायः सम्पत्ति-संग्रह के विचार से अपरिचित होती हैं और ऐसे प्रदेश के निवासियों में कोई भी जंगल अथवा शिकारगाह समस्त जाति की सम्पत्ति माना जाता है।" सभ्यता के पथ पर भील एक क़दम आगे हैं और उनमें शिकार की जमीन व्यक्तिगत भागों में विभाजित होती है, जैसा कि आगे लिखे उपाख्यान से सिद्ध होगा। इस उपाख्यान को मैंने कई वर्षों पूर्व लेखबद्ध कर लिया था। मेवाड़ और नरबदा (Nerbudda) के उजाड़ और एकान्त जंगलों में रहने वाले भील अब भी प्राकृतिकों का सा ही जीवन बिताते हैं। अग्नि के आविष्कार के परिणामस्वरूप रंधे हुए माँस व शराब को छोड़ कर उनके जीवन में और कोई विलास की वस्तु नहीं आ पाई है और वे ध्रुवों के किनारे रहने वाले एस्कीमो जाति के उन लोगों से किसी प्रकार भी अधिक सभ्य नहीं हैं, जिनको सड़ी हई व्हेल मछली की चर्बी वैसी ही स्वादिष्ट लगती है जैसे किसी भील को रंधा हुआ गीदड़ या छिपकली। अपने आप बहुतायत से उगे हुए जंगली मेवों से वनपुत्र के दस्तरखान की पूर्ति होती है और ये वैसे हो स्वादिष्ट पदार्थ हैं जो मॅरॉथॉन' और थर्मापिली के वीर-पूर्वजों को तृप्त किया करते थे; परन्तु उनके शाहबलूत या जैतून के फल-युक्त रात्रि-भोजन की अपेक्षा हमारे भील के आहार में विभिन्न और अधिक स्वादिष्ट पदार्थ भी सम्मिलित हैं; जैसे, तेंदुप्रा, इमली, आम और बहुत से दूसरे फल तथा तरह-तरह के जंगली अंगर एवं लसदार जमीकन्द इत्यादि । हाँ, यह बात अवश्य है कि उसे इन वस्तुओं को केवल १ Marathon (मॅराथॉन)-यूनान की राजधानी एथेन्स के उत्तर-पूर्व में २४ मील की दूरी पर एक मैदान, जहाँ ई० पू० ४७० में फारस और यूनान के वीरों में घोर युद्ध हुआ था।-Webster's Geographical Dictionary, 1960. २ थर्मापिली-यूनान का प्रसिद्ध दर्रा जो पूर्वीय समुद्र और पर्वत श्रेणी के बीच उत्तर से दक्षिण में दौड़ गया है । यहाँ यूनान की कितनी ही प्रसिद्ध लडाइयाँ हुई जिनमें अनेक यूनानी वीरों ने प्राणोत्सर्ग किया था। ई० पू० ४८० में स्पार्टा के बादशाह ल्योनीडस की अध्यक्षता में ३०० ग्रीक वीरों ने फारस की सेना का डट कर सामना किया। वे सभी इस दर्रा में मारे गए। उनके स्मारक पर लिखा है'स्पार्टा ! तुम्हारे वचन के अधीन हम यहीं हैं।' -N. S. E., p. 1212, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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