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________________ ३२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा 'सफेद मेंढे की सौगन्ध' है । ये मान्यताएँ केवल उन्हीं लोगों की हैं जो अपने आपको उजला या शुद्ध भील कहते हैं; और यदि इन मान्यताओं से मुक्त बड़ी संख्या में लोगों का हिसाब लगावें तो बहुत थोड़े से ही 'शुद्ध' कहलाने के अधिकारी मिलेंगे । वास्तव में, ये लोग अब भी अर्द्ध-सभ्य हैं और अन्धविश्वासों, आदतों और भाषा के विचार से निश्चय ही आदिवासी जातियों के हैं। यद्यपि इनकी भाषा के अधिकांश शब्द संस्कृत से निकले हुए हैं तथापि इनके उच्चारण स्पष्ट हैं । मेरा यह कथन मेरी निजी खोज की अपेक्षा इन लोगों के पड़ौसियों द्वारा किए हुए वर्णन पर अधिक आधारित है-क्योंकि भीलों की बोली एक ऐसा विषय है जिसका अध्ययन करने की मेरी साध पूरी न हो सकी और इस बात का मुझे खेद भी है । यदि में ऊपर वर्णन की हुई बस्तियों में जाकर अनुसंधान कर पाता तो अवश्य ही ऐसी कुछ बातों का पता लगाता तथा उनके घरों में जा जा कर (सजावट के प्रमुख चिन्ह) सफेद मेंढे और अश्वमुखी, उनके लॉरेस और पिनेटस्' के विषय में अपने ज्ञान को और भी अधिक विस्तृत कर पाता। इस अध्ययन से उन लोगों को बहुत कुछ प्राप्त हो सकेगा जो प्रकृति की पुस्तक को प्रत्येक दृष्टिकोण से पढ़ना चाहते हैं और जिज्ञासु को यह बात जान कर पाश्चर्य एवं प्रसन्नता होगी कि पुरानी कहावत 'छोर मिल जाते हैं'२ सिद्ध हो जाती है। प्रकृति के इन असभ्य और प्रशिक्षित घरों में उसको सत्य, अतिथिसत्कार और उस गौरवपूर्ण श्रेष्ठता के दर्शन होंगे जो यूरोपीय नियमों में से धीरेधीरे लुप्त होती जा रही है; और वह है, शरणार्थी को शरण देना । यदि कोई भील किसी को शरण दे देता है तो वचन की रक्षा के लिए वह अपनी जान तक दे देगा। जब कोई यात्री उसकी घाटी का निश्चित कर चुका देता है तो उसकी जान-माल सुरक्षित हो जाते हैं और दूसरे द्वारा किए हुए किसी भी प्रकार के अपमान का बदला लिया जाता है । 'मौला का सरना' या कोई और सांकेतिक शब्द जिसका वह रक्षक प्रयोग करता हो, बिरादरी के एक छोर से दूसरे छोर तक सुरक्षा-वाक्य का काम देता है । यदि कोई रक्षक यात्री के साथ कोई मार्गदर्शक न भेज सके तो उसके भाथे में से दिया हुअा एक तीर काफ़ी होगा और उसको उतना ही प्रामाणिक समझा जावेगा जितनी कि किसी ईसाई दरबार में दूत की मुद्रा समझी जाती है । और, पहाड़ी अफगान को तरह भी यहाँ व्यवहार नहीं किय जाता कि जब तक मेहमान घर की दीवार पर अङ्कित गृह-देवता की - १ प्राचीन रोमन जाति के गृह-देवता जिनकी तस्वीरें वे अपने घरों में दीवारों पर बनाया करते थे। R'Extremes meet' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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