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पश्चिमी भारत की यात्रा पर सुबह के ६ बजे पहँचे थे जब थर्मामीटर ८२° पर और बेरॉमीटर २८° २५' पर था। थोड़ा ही आगे चलने पर, जहाँ घाटी की चौड़ाई बिलकुल सिकुड़ गई है और थोड़ी दूर तो यह क्षितिज से ४५° का ही कोण बनाती है, धरातल ऊँचा नीचा और टूटा फूटा है; यहाँ पर ऊँट वालों और हाथियों को पूरी होशियारी तथा समझ से काम लेने की आवश्यकता थी अन्यथा उनको एवं पेड़ों की नीची डालों से टकरा-टकरा कर कई बार अस्तव्यस्त हुए उन पर लदे सामान को हानि पहुँचने का डर था । यहाँ पर हमने खुले पत्थरों का एक चबूतरा देखा। यह पुजारो (Pudzaroh) ' के भतीजे का स्मारक था, जो 'ऊटवण के मीणों द्वारा अपहृत जानवरों को छुड़ाने के प्रयत्न में मारा गया था। वे पीछा करने वालों से बचने के लिए नाळ का रास्ता छोड़ कर बाईं तरफ़ जंगलों में घूम खाकर घाटी की मुड़ी हुई दूसरी शाखा के मुंह पर आ गये थे। उन्होंने सोचा था कि इस तरकीब से वे अनुधावकों से बच सकेंगे और इस साहसिक प्रयत्न, वीरता एवं चतुराई के कारण कुछ सफलता भी मिली। प्रधान घाटो से इस शाखा के मोड़ पर पूरे बीस फीट की एक खड़ी ढाल है जिस पर से एक बरसाती नाले ने रास्ता बना रखा है। इसी रास्ते से उन लोगों ने बचाव का प्रयत्न किया था। 'भेड़चाल' वाली पुरानी कहावत इन पहाड़ी हिस्सों के जानवरों पर पूरी तरह लागू होती है । ये घोड़े के बछेड़ों की तरह चंचल होते हैं और जिधर एक चला जाता है बाकी सब उसीके पीछे चल देते हैं । पशुओं की इस प्रवृत्ति को पहचान कर मीणा लोग चट्टान पर जा पहुंचे और उन्होंने सबसे आगे वाले पशू को छूरा मार कर फेंक दिया; कूदने वाले नेता का अनुकरण करते हुए दूसरे पशु भी कूद
१ Pudzaroh यह शब्द 'पुजारा' या 'पुजारो' का अंग्रेजी रूपान्तर प्रतीत होता है जो
भीलों आदि के गुरु ब्राह्मणों की जाति का सूचक है । इन लोगों में नियोग की प्रथा आदि मान्य होने के कारण ये निम्नकोटि के ब्राह्मण माने जाते हैं । मेवाड़ के कुंभलगढ़, सेवंत्री (रूपनारायण), सायरा एवं जरगा के पहाड़ी क्षेत्रों में इन लोगों की अच्छी बस्तियाँ बसी हुई हैं। इसी प्रकार Dussanoh भी किसी स्थान का नाम न होकर दसाणा या दस्साणा नामक निम्नकोटि के क्षत्रियों की एक खाँप है जो उपर्युक्त क्षेत्रों में पाई जाती है । इनको मेवाड़ में 'दहारणा' या 'दुसाना' कहते हैं । इनमें भी नियोग अथवा 'नाता' की प्रथा प्रचलित है । अब ये दोनों ही जातियाँ खेतिहर हैं। स्थानीय स्रोतों से प्राप्त उपर्युक्त सूचना भेजने के लिए मैं अपने मित्र श्री व्रजमोहन जावलिया, एम. ए. का आभारी हूं। ठा० बहादुरसिंह, पट्टेदार बीदासर ने अपनी 'क्षत्रिय जाति की सूची (श्री ज्ञानसागर प्रेस, बम्बई, १६७४ वि०) में भी पृ० १२२ पर 'दुसाना' जाति के जेनगढ़ से खुमाण के साथ चित्तौड़ में आने का उल्लेख किया है ।
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