SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण ३ ग्रन्थकर्ता के प्रति सेवकों का कृतज्ञभाव; घाटी को सँकड़ाई; समाधि का पत्थर; मीणों की चढ़ाई; भीलों की शक्ति व उनका स्वभाव; रहन-सहन; उद्गम और भाषा; जंगली भील; वन्तकथा; भारत के प्रादिवासी भीलों के अंध-विश्वास; भीलों की धार्मिक श्रद्धा एवं देशभक्ति; उनके चरित्र में परिवर्तन के कारण; 'सरणा' या देवस्थान; सलम्बर का राव और उसका भील-घातक प्रासामी; लुटेरे भीलों को फांसी; सरिया लोग, उनका स्वभाव और रहन सहन । ___ जून ५वीं; वीजीपुर या वीजापुर : रात में किसी भी जंगली चौपाये या दो-पाए द्वारा कोई विघ्न नहीं हुआ । परन्तु जब कूच की आज्ञा देने के लिए डेरे से बाहर निकला तो अपने विश्वासपात्र सशस्त्र राजपूतों की टोलो को 'रात की आग' के पास खड़े देख कर मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा, वे रात भर भीलों और रीछों से मेरी रक्षा करते रहे और मैं सोता रहा। जब मैंने, कल शाम को विदा लेकर उनके अपने अपने गांव न जाने पर, दुःख प्रकट किया तो तुरन्त ही बहुत सी आवाज़ों ने एक साथ मिल कर यही भावना प्रकट की 'ऐ महाराजा, जो कुछ आपने हमारे लिए किया है उसके बदले यही आपकी आखिरी सेवा है जो हम कर सकते हैं-'मन का [की ] चाकरी'। क्या अब भी यही कहा जायगा कि इस प्रदेश में कृतज्ञता के लिए कोई शब्द नहीं है ? यदि यही खयाल है, जो ठीक नहीं है तो कार्यरूप में यह प्रत्यक्ष उदाहरण मौजूद है जिसमें बहाने की कोई गुञ्जाइश नहीं । कुछ ही घण्टों में सदा के लिए विदा होने वाले विदेशी मेहमान की इससे बढ़ कर आन्तरिक सेवा और क्या हो सकती है ? शहर के धनी लोगों ने तथा हलवाहे किसानों ने बराबर गम्भीर शब्दों में कृतज्ञता प्रकट की। अस्तु, अब हम बाकी बची घाटी की यात्रा चालू करें और मरु के तप्त मैदानों में चल कर पहुंचे। कल वाली घाटी के दरवाजे पर नायन माता नाम की देवी की भोंडी सी मति बनी हुई थी। थोड़ी ही देर बाद, जब हम उतरने लगे तो एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जो नाळ की गरदन सा बना हुआ है और यहाँ से ही दूसरी नाळ शुरू होती है अथवा इन जंगलो स्थानों को दिए हुए बहुत से नामों में से एक नया नाम चालू होता है। यह शेष भाग शीतला माता के नाम पर प्रसिद्ध है जो बच्चों की, विशेषत: शीतला या चेचक के रोग में, रखवाली करती है। हम इस स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy