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________________ प्रकरण • २; पहाड़ी राजपूत [ २१ लंका में पाया जाता है । मैंने अपने सम्बन्धी कैप्टेन वाघ को, जिन्हें राजधानी में मैंने कार्यभार सौंपा है, लिखा है और गांव का नाम भी बतला दिया है कि कुम्भलमेर के पहाड़ी इलाके में 'कडियां' नामक. गाँव से, जहाँ जंगली दाख, सेव और सालू मिश्री पैदा होते हैं, ये सभी चीजें इकट्ठी कर के थोड़ी-सी मेरे लिए भेज दें। यदि पाल्प (Alp)की परिभाषा ऊँची जमीन अथवा पहाड़ी चरागाह हो तो इस सुन्दर इलाके के लिए यह पर्वतीय विशेषण बहुत ही उपयुक्त होगा क्योंकि इन ऊंचीऊँची चट्टानों और अनगिनती झरनों के बीच-बीच में बढ़िया चरागाहों की ही बहुतायत नहीं है वरन् जोतने योग्य भूमि भी है, जिसका बहुत बड़ा भाग मक्का, गेहूँ, जौ और गन्ने के लिए हल चला कर तैयार किया जा रहा था । यदि कृषिउद्योग के किसी प्रयोग को देखने में आनंद आता है तो वह विशेष रूप से इन्हीं पहाड़ी दरों में मिल सकता है जहाँ जङ्गल के जङ्गल समतल बना कर हल चलाने योग्य बना लिए गए हैं। परन्तु विचारशील मनुष्य के लिए यहाँ पर एक और भी आकर्षण का विषय है । वह है, यहाँ के प्राचीन भूस्वामियों के वंशज, पहाड़ी राजपूतों को अपनी पूरी देशी शान में देखना । उनका कद लम्बा, शरीर पुष्ट और आत्मा स्वच्छन्द है । यद्यपि ये लोग कड़ी मेहनत कर के गुजर करते हैं फिर भी अपने आभिजात्य को जरा-सा भी नहीं भूलते। मैदान में रहने वाले अपने अकर्मण्य बन्धुओं की तरह ये लोग भी ढाल तलवार सदा साथ में रखते हैं, परंतु इनका जीवन आसपास में बसने वाली मेर, मीरणा, और भीलों को जरायमपेशा जातियों के विरुद्ध सामरिक प्रतिरक्षा का दृश्य उपस्थित करता है । आज सभी ठाकुर और गाँवों के मुखिया अपनी सेवाएं अर्पित करने के लिए मेरे पास इकट्ठे हुए थे। उनमें से कई एक तो दिन भर मेरे डेरे में बने रहे और पुराने जमाने की बातें सुना कर मेरा मनोरंजन करते रहे कि किस प्रकार उनके पूर्वजों ने पास के एक-एक दर्रे पर जान दे देकर (देश की रक्षा की थी जब कि 'उत्तर की ओर से युद्ध के बादल उमड़ रहे थे' और तुर्क ने उनके सरदार, महाराणा को वश में करने का पक्का इरादा कर लिया था। कभी अपने पड़ौसी लुटेरों के हमलों का हाल सुनाते तो कभी उन प्राचीन बातों का बखान करते जिन्होंने पर्वत के प्रत्येक शृङ्ग और घाटी को अमर बना दिया था। १ यह टिप्पणी, मेरा विश्वास है कि बाद में विविध सूचना के लिए Illustrations of che Botany and other Branches of the Natural History of the Himalayan mountains' के उत्साही लेखक वनस्पतिशास्त्री Dr. Royle को प्राप्त हो जावेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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