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________________ २२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा उन्होंने एक अस्पष्ट-सा घना जंगलो स्थान बताया जो बनास के उद्गम के पीछे ही था; वहाँ पर वीर प्रताप अपने निर्दय शत्रुओं से दुखी होकर शरण लिया करता था। इस स्थान को तथा ऐसे ही दूसरे स्थानों को जहां वह शरण लिया करता था, वे 'राणा-पाज' अर्थात् राणा के पद-चिह्न कहते हैं। इन आनंददायक गाथाओं के सुनने में तथा कॅप्टा (बाँस के धनुष) और पूरे एक गज लम्बे तीर से अभ्यास करने में दिन झटपट बीत गया। इन पहाड़ी सरदारों की पोशाक मैदान के रहने वालों से भिन्न एवं प्रासपास के दृश्यों से मेल खाती हुई थी। ज्यों ही दशाणोह का सरदार आया तो उसे देख कर, उसकी पगड़ी के अलावा, हम एक प्राचीन ग्रीक की कल्पना कर सकते थे । छाती और बाहों को खुला छोड़ कर उसकी चद्दर वाँए कंधे पर एक गाँठ से बँधी हुई थी और लम्बाई तथा शकल में घाघरे से मिलता जुलता एक कपड़ा उसकी कमर से लिपटा हुआ था। वह हाथ में धनुष लिए हुए था और तरकश उसके कंधे से लटक रहा था । पहाड़ी लोगों की साधारणतया यही पोशाक है और सिरोही तक मुझे यही मिली । कुछ सुधरे हुए लोग यही कपड़े ढीले पाजामे पर पहनते हैं परंतु यह प्राचीन पोशाक में एक नवीनता का मिश्रण मात्र है। उनके गांवों की बनावट भी उनकी पोशाक की सादगी के अनुरूप ही है; गोलाकार घर, जिन पर नोकदार छप्पर की छतें-ऐसे ही घरों के कुछ गाँवड़ों के समह सुरक्षा के लिए चोटी के अधबीच में नीम के वृक्षों की छाया में बसे हुए बहत ही सुन्दर दिखाई पड़ते हैं। कहीं-कहीं, जैसे पजारो में, गांव का शिखरबंध देवालय इस दृश्य को और भी महानता एवं आकर्षण प्रदान करता है। जब मैं उधर से निकला तो वहाँ के अंधे सरदार को मुझ से मिलने लाया गया, और यहाँ पर मैंने सहनशील राजपूत और खूखार धर्मांध मुसलमान के बीच स्पष्ट अंतर लक्ष्य किया कि उसके द्वारा विजयचिह्न के रूप में बनाई हुई ईदगाह अब तक अछूती खड़ी हुई थी यद्यपि वह पजारो के अर्द्धभग्न मंदिर से साफ दिखाई पड़ रही थी। आज के दिन का मेरा दूसरा आनंदप्रद कार्य बनास के बहु-प्रतीक्षित उद्गम को तलाश कर लेने में था; यह नदी विशालता एवं उपयोग की दृष्टि से रजवाड़े में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । कई प्रदेशों में होकर चम्बल से इसके संगम की तलाश कर चुकने के बाद, यह अनुसंधान मेरे मन में वे आनंददायक बहुमुखी परंतु वर्णनातीत गुदगदियाँ पैदा किए बिना न रह सका जो किसी महानदी के उदगम पर उत्पन्न हुमा करती हैं। यह स्थान मेरे डेरे से दक्षिण-पश्चिम की तरफ लगभग पाँच मील की दूरी पर पठार के सब से ऊँचे भाग पर था। बहुत-से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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