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________________ १८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा कान्हराय के सीधे वंशज' ( कोठारिया - राव ) के साथ मेरी सहानुभूति थी । कान्हराय ( जिसको फरिश्ता ने कण्डीराय लिखा है) ने ही अपने बख्तरबंद साथियों के साथ शहाबुद्दीन के सामने घोड़ा बढ़ाया था और यदि शाह का कवच इतना सुदृढ़ नहीं होता तो वह उस सरदार के भाले से अपने शरीर पर एक अमिट छाप लिए बिना दिल्ली के सिंहासन को प्राप्त करने का अभिमान कभी न कर पाता । 'क्या कान्हराय का वंशज महाराणा के कान भरने वाले चुगलखोरों की दया पर निर्भर रहे ? मेरा दारिद्र्य ही मेरा शत्रु है, क्योंकि अन्याय की चोटों से बचने के लिए मेरे पास इतना धन नहीं है कि मैं हुजूर के आसपास रहने वालों को रिश्वत देकर उनका मुँह बंद कर सकूँ ।' यह ज़ोरदार अपील, राव का व्यक्तिगत नम्र श्राचरण और सब से बढ़ कर उसके मामले का न्याय – ये सब बातें ऐसी थीं कि जिनका विरोध नहीं किया जा सकता था। मैंने राव को निश्चित रहने को कहा और महाराणा के पास उसकी वकालत करने का भी आश्वासन दिया । उस दिन में 'हिन्दू (कुल) सूर्य' के सामने उपस्थित हुआ। मुझे उनकी भावनाएं पक्षपातपूर्ण जान पड़ीं । परन्तु मैंने राणा को चौहान की उस समय की सेवाओं का स्मरण दिलाया जब कि उन दिनों पूर्ण कृपापात्र बने हुए लोग मुँह दिखाने तक की हिम्मत नहीं करते थे । फिर, मैंने उनको राव पर वैसी ही कृपा और बड़प्पन बरतने की भी प्रार्थना की जैसी कि परमात्मा की ओर से उन्हें प्राप्त थी । राणा के चरित्र में हठ जैसो कोई बात नहीं थी; उन्होंने मेरे मुवक्किल ( राव ) के विषय में जो भी अच्छाई बताई गई उसे तुरंत स्वीकार किया । हमारा उस दिन का सम्मेलन राणा की ओर से यह आश्वासन देने पर समाप्त हुआ कि राव भागाजी के प्रति असद्व्यवहार छोड़ दे और उसे दरबार में उपस्थित करे, इसके बदले में वे (राणा) उसके हित की प्रत्येक बात पर पूरा ' कर्नल वॉल्टर ने 'पृथ्वीराज रासो' के श्राधार पर कोठारिया के चौहानों को पृथ्वीराज के काका कन्हराय का वंशज माना है, यह भ्रम है । कन्ह नाम का पृथ्वीराज का कोई काका नहीं था । वास्तव में ये रणथम्भौर के सुप्रसिद्ध राव हम्मीर के वंशज हैं । बाबर और महाराणा सांगा की लड़ाई के समय संयुक्त प्रान्त ( अब उत्तर प्रदेश) के मैनपुरी जिले के राजौर नामक स्थान से माणिकचन्द चौहान ४००० सैनिक लेकर महाराणा की सहायता करने आया था और वीरता से लड़कर युद्ध मारा गया था । उसके सम्बन्धी और सैनिक महाराणाओं की सेवा में ही रहने लगे । - गौ० ही ० प्रोझा कृत उदयपुर राज्य का इतिहास, जि० २; पृ० ८७७ મ बहन का पुत्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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