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________________ प्रकरण • २; कोठारिया का राव [१७ कोठारिया के किले पर पुनः अधिकार करने के लिए छोड़ दिया ।' कोठारिया-राव के पूर्वजों के अधिकार में पहले आगरा के पास चंडावर की जागीर थी जो सिकन्दर लोदी ने उनसे छीन ली थी क्योंकि उसने सरदार (चौहान) से कन्या माँगी थी और उसने इन्कार कर दिया था। तत्कालीन राव मानिकचन्द अपने परिवारसहित गुजरात चला गया और वहाँ मुजफ्फरशाह ने उसका अच्छा स्वागत किया तथा काठी सीमा पर सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। काठियों के साथ एक झगड़े में वह बुरी तरह घायल हुग्रा और स्वयं सुलतान उसको रणक्षेत्र से ले गया । डूंगरशी रावल को सहायता करते हुए उसका पुत्र दलपत पराजित हुआ और मारा गया इसलिए उसके बाद उसका (दलपत का) पुत्र संग्रामसिंह राव हुआ जो गुजरात के बहादुरशाह की चित्तौड़ पर चढ़ाई में साथ था जब कि हुमायूं राणा की सहायता करने आया था। उसी समय चौहान से २००० घोड़ों, १५०० पैदल व ३५ हाथियों के साथ मेवाड़ में रहने के लिए राणा (उदयसिंह) ने आग्रह किया था। इस सम्बन्ध में शर्ते ये थीं कि चौहान केवल राणा ही के साथ युद्ध में जाएगा, कभी अपने से नीचे दर्जे के सरदार के अधीन रह कर कार्य नहीं करेगा, सप्ताह में केवल एक बार हाजिरी देगा और उसका पद सीसोदिया वंश के सबसे बड़े सरदार के समकक्ष होगा। - जब मैं राणा के दरबार में गया था उन्हीं दिनों में उन्होंने राव के गुजारे मात्र के लिए बचे हुए कोठारिया के दोनों गाँवों पर भी जब्ती भेज दी थी। जागोर का शेष भाग तो पहले ही सामान्य शत्रुओं (दक्षिणियों) के आक्रमणों से नष्ट हो चुका था। राणा ने वे दोनों गाँव राव के जीवित पुत्र के नाम कर दिए थे क्योंकि 'बाबा' की सन्तति होने के कारण वह उनका भानजा था और पिता के तथाकथित दुर्व्यवहार के कारण अब उन्हीं (राणा) के संरक्षण में था। परन्तु राणा ने अपने सरदारों की मन्त्रणा से दक्षिणियों और सामन्तों के सभी मामलों में मुझे सर्वाधिकारसम्पन्न निर्णायक नियुक्त कर दिया था, इसलिए कोठारिया का मामला भी निर्णय के लिए मेरे पास आया । जिसने 'उत्तर के सुलतान' के विरुद्ध सैन्य-संचालन किया था और मुसलमान इतिहासकारों ने भी जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है ऐसे दिल्ली के अन्तिम चौहान सम्राट् के काका और सेनापति १ महाराणा भीमसिंह के समय में फतहसिंह का पुत्र विजयसिंह ऊनवास गांव से कोठारिया जाते समय होल्कर की सेना से घिर गया और मरहठों के मांगने पर अस्त्र शस्त्र व घोड़े नहीं दिए-वरन् घोड़ों को मार डाला और साथियों सहित स्वयं लड़ता हुआ मारा गया।-प्रोझा, उदयपुर राज्य का इतिहास, जि० २, पृ० ८७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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