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________________ १६ ] पश्चिमी भारत की यात्रा पास ऐसा प्रतिरंजित आरोप लगा कर शिकायत करवाई कि जिससे एक राजपूत द्वारा दूसरे के अपमान का भरपूर बदला लिया जा सके । महाराणा के दरबार में कोठारिया के राव ( यही उसकी पदवी थी) के पहले से ही बहुत से शत्रु थे जिनमें अनेक उसी के भाई-बन्धु थे क्योंकि, जैसा उसने स्वयं कहा था, राजपूतों में चौहान की जाति सब से खराब है । इसमें कोई भी अपने भाई की बढ़ती से ईर्ष्या किए बिना नहीं रहता । महाराणा को ऐसा विश्वास कराया गया कि वह भागा पिता, जिसका एक पुत्र मर चुका था, अपनी चहेती स्त्री के बहकावे में आ कर बदला लेने के लिए दुहागिन स्त्री से उत्पन्न हुए अपने दूसरे पुत्र को भी मरवा देने की सोच रहा है । दुर्भाग्य से राजपूतों में पति-पत्नी के आपसी मनोमालिन्य एवं तीव्र विरोध के कारण बाल-हत्या की घटना कोई आश्चर्य अथवा सन्देह का विषय नहीं होती इसलिए राव के तथाकथित अभिप्राय को उत्सुकता से सही मानकर महाराणा ने उस प्रति प्राचीन वीरवंश के अन्तिम वंशज के प्रति कार्यवाही करने का बहाना ढूंढ लिया । इस राज्य में विदेशी (ग़ैर- मेवाड़ी) सामन्तों को जो भूमि दी जाती है उसका पट्टा 'काला पट्टा' कहलाता है अर्थात् वह वापस लिया जा सकता है जब कि स्थानीय पुराने पटायतों के पट्टे वापस नहीं लिए जा सकते । ये पटायत कोठारिया के राव पर दबाव डालने के कारण विद्रोही भी हो सकते थे परन्तु उसकी जागीर राज्य के मध्य भाग में अकेली रह गई थी तथा बार-बार आक्रमण करने वाले मरहठों से लगातार लोहा लेते रहने के कारण उसकी सामना करने की शक्ति भो क्षीण हो चुकी थी । एक बार, जब मेवाड़ में स्वामि भक्ति देखने को भी नहीं मिलती थी, यही राव महाराणा के दरबार से नौकरी देकर लौट रहा था तो उसको और पचीस घुड़सवारों की एक छोटी टुकड़ी को मरहठों ने घेर कर आत्म समर्पण करने के लिए कहा । तब राव ने तुरन्त नीचें उतर कर एक ही बार में अपने घोड़े के घुटने की भीतरी नस को काट दिया और साथियों को भी अपना अनुकरण करने के लिए कहा। फिर उन लहूलुहान घोड़ों को चारों ओर खड़े कर के वे सब ढाल तलवार लेकर सामना करने के लिए खड़े हो गए। उन दिनों दक्षिणी लुटेरे विजय की अपेक्षा लूट को ही अपना प्रमुख उद्देश्य समझते थे और जहाँ सफलता के परिणाम में केवल ठण्डा लोहा ही प्राप्त होने की सम्भावना होती वहाँ वे वार नहीं करते थे । इसलिए उन्होंने चतुराई से राव को पैदल ही जा कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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