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________________ प्रकरण - २; कोठारिया का राव [ १५ महाराणा को भी व्याहो जा सकती हैं। इस प्रकार इस जाति के महान मूलपुरुष का रक्त, दिल्ली, कन्नौज और अहिलवाड़ा के चौहान, राठौड़ और चावड़ा राजपूत शासकों के किंचित अवर रक्त में सम्मिलित होकर अप्रत्यक्ष स्रोतों द्वारा मूल प्रवाह में पुन: मिलता रहता है । इस तरह के बेमेल सम्बन्धों और बहविवाह के कारण उत्पन्न हुए भयङ्कर परिणाम और बुराइयाँ निम्नलिखित छोटी कहानी के उदाहरण से तुरन्त ही समझ में आ जाती हैं। राजघराने से अनमेल सम्बन्ध के बारे में राजस्थान के इतिहास' में सादड़ी के सरदार का महाराणा की पुत्री के साथ सगाई-विषयक उदाहरण दे चुका हूँ और बहुधा अधिकारलिप्सा के कारण बहुविवाह-जनित बुराइयों, झगड़ों आदि के उदाहरणों से तो सारा इतिहास ही भरा पड़ा है। और, जैसा कि निम्नलिखित कहानी से विदित होगा, उस स्थिति में तो परिणाम और भी शोचनीय हो जाता है जब कि शास्त्रविधि से पति स्वीकार करने के उपरान्त महाराणा को पुत्रियों के विषय में अनुग्रह करने का कोई अधिकार नहीं रह जाता। दिल्ली के अन्तिम सम्राट के वंशज कोठारिया के चौहान राव ने, जो मेवाड़ के सोलह प्रमख सरदारों में था, दो विवाह किए थे। एक भींडर के शक्तावत घराने को लड़की थी और दूसरी राजपरिवार के एक राणावत सरदार की पूत्रियों में से थी, जिनको सम्मान के लिए 'बाबा' कहते हैं। परन्तु, प्रेम जन्म और घराने को नहीं देखता। फिर, भींडर ठाकुर की लड़की में राजपूत गृहिणी में होने वाले अन्य गुणों के साथ-साथ आज्ञाकारिता का ऐसा गुण भी वर्तमान था कि जिसके कारण वह उच्चतर घराने की लड़की की अपेक्षा पति की अधिक प्रीतिपात्र बन गई। दोनों ही ठकुरानियों के सन्तान उत्पन्न हुई; परन्तु, प्रथम पैदा होने के कारण कोठारिया की गही का अधिकारी भली शक्तावतनी का पुत्र था जिसे सभी प्रादर और प्रेम की दृष्टि से देखते थे। दुर्भाग्यवश, वह प्यारा बच्चा बीमार होकर मर गया और उसकी शोकग्रस्त माता ने इस घटना को, अपने पुत्र के लिए उत्तराधिकारप्राप्ति के निमित्त, अपनी सौत की करतूत मानने में जरा भी सन्देह नहीं किया । उसने स्पष्ट शब्दों में अपनी सौत पर दोष लगाया कि उसी ने डाकिनी को लालच देकर उसके पुत्र का कलेजा खिला दिया । जहाँ ऐसे अन्धविश्वासों का पूरा बोलबाला रहता है वहाँ यह स्वाभाविक ही है कि प्रेमी पति अपनी प्रियतमा के सन्देह को मान्यता दे । फल यह हुआ कि वह उसकी प्रतिस्पद्धिनी से और भी खिंच गया। उच्चकुल की ठकुरानी को यह सहन नहीं हुआ और उसने गार्हस्थ्य अधिकारों की पुनः प्राप्ति के लिए अपने पिता के द्वारा, दोनों ही ठिकानों के सार्वभौम अधिकारी, महाराणा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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