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________________ १४ ] पश्चिमी भारत की यात्रा सोने के तार से बँधे हुए हैं; ये उसके भद्देपन की कमी को और भी पूरा कर देते हैं। इस वनपुत्र भील की बेमेल प्राकृति को ऐसी जहरभरी अपशब्दयुक्त बोली मिली है जो अरावली की गुफाओं (दरारों) में पार हो जाती है। परन्तु, यहाँ हम चन्द की इस उक्ति को स्वीकार नहीं करते कि 'कौए का पुत्र कौना ही होता है'' क्योंकि गोगुंदा का कुँअर रंग रूप में अपने पिता से बिलकुल भिन्न है; फिर, पिता भी 'कौए का पुत्र' नहीं है, उसके व्यक्तिगत भद्देपन को तो 'कुदरत की मरजी' ही कहा जा सकता है । मैं उन बातों का वर्णन अन्यत्र कर चुका हूँ जिनके कारण भगवान राम की गौरवान्वित सन्तान, मेवाड़ के राणाओं को, भारत के मुसलमान बादशाहों से वैवाहिक सम्बन्ध कर के हिन्दू-रक्त को कलङ्कित करने वाले, दूसरे राजपूत राजाओं के साथ बेटी-व्यवहार बन्द करने के लिए विवश होना पड़ा था । अब, नियमानुसार वे अपने सगोत्र राजपूत सरदारों में तो विवाह कर नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने कुछ अन्य-गोत्रीय चौहान, राठौड़ और झाला जाति के राजपूतों को बेटी-व्यवहार के लिए निश्चित किया कि जिनके द्वारा उनके मूल-पुरुष बापा रावल की शाखा चलती रहे। वे राजपूत भी राणाओं के घराने से विवाह-सम्बन्ध होने के कारण उस गौरव को प्राप्त कर सके, जो केवल धन के बल पर उन्हें नहीं मिल सकता था और फलत: वे भारत के दूसरे छोटे स्वतन्त्र राजाओं की समानता का दम भरने योग्य हो गए। वर्तमान महाराणा की माता गोगुंदा के ठिकाने की लड़की थी जो एक निर्भय और मर्दानी बुद्धि वाली वीर स्त्री थी। यदि उसके पुत्र को देख कर अनुमान लगाया जाय तो, कह सकते हैं कि उसका व्यक्तित्व भी शानदार होगा क्योंकि राजपूताना में राणा का वंश सुन्दरता में सब से बढ़कर माना जाता है। वर्तमान राजकुमार, अब राणा जवानसिंह, पर तो जैसे प्रकृति ने शारीरिक राज-लक्षणों की छाप ही लगा दी है। इसी राणी की भतीजी मेवाड़ के प्रमुख सरदार सलूम्बर के ठाकुर की माता है जिसका राजघराने से दोहरा सम्बन्ध है। इनसे उत्पन्न होने वाली लड़कियों की शादी बेदला के चौहान सरदारों अथवा घाणेराव के राठौड़ों के यहां हो सकती है। ये दोनों ही ठिकाने मेवाड़ के सोलह प्रमुख ठिकानों में हैं। फिर, इन ठिकानों की लड़कियां . फिरदौसी ने भी महमूद पर व्यङ्गय करते हुए कहा है कि 'कौए के अंडे से कौए के प्रति रिक्त और कुछ पैदा नहीं हो सकता।' । राजस्थान का इतिहास, जिल्ब १, पृ० ३३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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