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________________ प्रकरण • २; गोगुंदा का सरदार [ १३ रुपये वार्षिक राजस्व की कही जाती है परन्तु जैसा कि इस प्रदेश की कहावत है 'रुपये के पूरे सोलह आने करने में अथवा दूसरे शब्दों में, बुद्धि और पूंजी का पूरा उपयोग करने में, यहाँ के रईस बहुत कमजोर हैं इसलिए पिछले कई वर्षो से गोगंदा का जागीरदार उपर्युक्त रकम का दशमांश से अधिक वसूल नहीं कर पाया है । इस पहाड़ी भू-भाग में खेतीबाड़ी का चालू तरीका यह है कि तालाब या बन्धे बाँध लेते हैं और जमीन को चौरस कर लेते हैं; परन्तु कितनी ही शताब्दियों तक तो यह हिस्सा युद्धस्थल बना रहा और मरहठों के अधिकार में भी रहा । गोगुंदा का सरदार झाला राजपूत है; यह जाति सौर प्रायद्वीप में विशेष पाई जाती है। इन गए-बीते दिनों में भी, यहाँ के वर्तमान जागीरदार' को मेवाड़ के बड़े सरदारों के अनुरूप मानना ठीक न होगा क्योंकि निस्सन्देह वह एक निकृष्टतम हीन कोटि का प्राणी है-ठिंगना, काला और भद्दा, शरीर और बुद्धि दोनों में कमजोर; उसे तो हम एक ऐसा 'वनमानुष' कह सकते हैं जिसे [परमात्मा की अोर से] बोलने की शक्ति भी प्रदान कर दी गई हो क्योंकि उसका रंग-रूप मेरे देखने में आई हुई अन्य जातियों की अपेक्षा उसी लम्बी भुजाओं वाली जाति से अधिक मेल खाता है। धातुविष (शराब) के अतिप्रयोग से उसके दाँत जाते रहे हैं परन्तु जो कुछ बचे हुए हैं वे काले हैं और प्रसिद्ध हैं : त्रिह झाला त्रिहुँ पूरव्या, चौंडावत भड़ च्यार। दुय सगता, दुय राठवड़, सारंगदेव पंवार ॥१ सरणायत्तां सादड़ी, गोधूंदो घर गल्ल । दुरग देलवाड़ो दुरस, झाला खत्रवट झल्ल ॥२ कोठारयो पर बेदलो, पालसोळ भुज पाण। माझीधर मेवाड़ में, चितबंका चहुँवाण ॥ ३ दिपै सलूंबर देवगढ़, बेधूं थान विचार। अधपतियाँ आमेट ए, चौंडा सरणा च्यार ॥४ इक भींडर दुय बानसी, महि बिच सगतां मोड़। घाणेरो बदनोर घर, राणधरा राठौड़ ।। ५ कानोडह अपणां करां, सरणों सारंगद्योत । ज्यों पंवार बीझोलियां, वेहू सरणां जोत ।। ६ (मलसीसर ठा० भूरसिंह कृत महाराणायशप्रकाश; पृ० २०८) , मानसिंह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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