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________________ १२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा २री जून; गोगुंदा के पास-ऐसे भू-भाग में होकर एक छोटी-सी मंज़िल जहाँ कदम-कदम पर आकर्षक दृश्यावलियों एवं ऐश्वर्य के दर्शन हुए। सूर्यास्त के समय २७° २५' चिह्न बता रहा था कि हम ऊँचे चढ़ रहे थे और तापमापक यन्त्र ८२ अर्थात् अपने स्थान से ५३ अंश नीचे सूचित कर रहा था कि हम घाटी में बारह मील के घिराव में स्वस्थ जलवायु में आ पहुँचे थे। कल पछाँह से वर्षा हुई थी और आज हवा ने रुख दक्षिण-पश्चिम की ओर पलट लिया था। इस ऋतु में इन हवानों की गति प्रायः इन्हीं दिशाओं के बीच में रहती है । लगभग आधे रास्ते चल कर ज्यों ही हम बरूनी के दर्रा [घाटी] में घुसे वहाँ का एक मात्र छोटा-सा मन्दिर दिखाई पड़ा जो इस बात का सूचक था कि इन जङ्गलों में भी, जिनको मानो प्रकृति ने अपनी किसी सनक के क्षण में बहुत कुछ बदल दिया है, कभी मनुष्य रहते थे क्योंकि यहां की विषम ढालों पर घनी वनस्पति, गुच्छेदार खजूर और ताल के वृक्ष अपना सिर ऊँचा किए खड़े हैं और इस बात का प्रमाण दे रहे हैं कि इस पर्वतीय प्रदेश में पानी की कमी नहीं थी। जहां-जहां से ये पहाड़ अनावत रह गये हैं वहाँ वहाँ से इनका इमारती पत्थरों का बना शरीर स्पष्ट दिखाई देता है। घाटी के तल में विभिन्न आकार और रंग के गहरे नीले और ठोस भारी पत्थर से लेकर गहरे भूरे रंग की पतली पट्टियों का सलेटी पत्थर तक दिखाई देता है। गोगुंदा के आस पास यही (समुद्री हरा) सलेटी रंग खास तौर से पाया जाता है क्योंकि यहां के मकानों की छतें इसी पत्थर से पटी हुई हैं, जो सभी एक समान दिखाई देती हैं। यहां के बड़े मन्दिर में भी पूरी तरह इसी पत्थर की पट्टियों का उपयोग हमा है। इसी पर्वत की ऊँची चोटियाँ, जो हमारे रास्ते से सैकड़ों फीट ऊपर थीं, गुलाबी इमारती पत्थर की हैं और वे सूरज की रोशनी में काच के समान चमक रही थीं। मेवाड़ की सोलह' बड़ी जागीरों में से होने के कारण गोगुंदा इस प्रदेश का एक मुख्य कस्बा है। नाम मात्र के लिए यह जागीर ५०,०००) पचास हजार ' महाराणा अमरसिंह द्वितीय (१६९६-१७१० ई०) ने मेवाड़ के प्रथम श्रेणी के सरदारों की संख्या १६ नियत की थी, वे 'सोला' उमराव कहलाते हैं। उन ठिकानों के नाम ये हैं - सादड़ी, गोगुंदा, देलवाड़ा, कोठारिया, बेदला, पारसोली, सलूंबर, देवगढ़, बेगू, आमेट, भीडर, बानसी, घाणेराव, बदनोर, कानोड़ और बीजोल्यां। . (उदयपुर राज्य का इतिहास-गौ० ही० अोझा, पृ० ८७०-६६१) इन सोलह ठिकानों के नामों एवं इनके सरदारों के वंशों के विषय में निम्न पद्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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