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________________ प्रकरण - २; उदयपुर से प्रस्थान [ ११ और परिमारण के बहुत से लाल लाल फल लगे हुए हैं । इसको आकोलिया कहते हैं। ____ मुझे ऐसे दृश्यों के निरीक्षण के लिए बहुत ही कम समय मिल रहा था क्योंकि इस यात्रा में मुझे विदा करने के लिए आए हुए मुसाहब, कुछ सरदार और बहुत से दूसरे लोग भी साथ-साथ चल रहे थे। मेरे घुड़सवार और सामान वाले सुबह-सुबह इधर-उधर छितराते रहे और यह तो साफ ही था कि खण्डित मूर्तियों और शिलालेखों से लदे हुए ऊँटों को भी इस टूटे-फूटे रास्ते से चलने में कोई आनन्द नहीं आ रहा था । यद्यपि धूप बहुत तेज थी जब कि हमने अपनी इस नवीन परिस्थिति का आनन्द लेते हुए एक घेरधुमेर इमली के पेड़ की छाया में छोटी हाजरी' की मेज सजाई परन्तु हुसैन (Hyson) के प्रेमी मेरी उस समय की घबड़ाहट का अनुमान लगावें जब मैंने अपने समस्त रोगों की एकमात्र औषधि, क्वाथ का पहला चूंट लिया तो मुझे वह सब एक अत्यन्त तीव्रगंध से युक्त मालूम पड़ा। बात यह हुई कि सामान बांधते समय जल्दी-जल्दी में मेरे नौकर ने तारपीन के तेल की एक बोतल चाय के भण्डार के पास ही जमा दी और डाट निकल जाने के कारण यह बहुमूल्य द्रव, जिसकी एक बोतल की कीमत मुझे दो मोहरें देनी पड़ी थीं, इस और भी अधिक मूल्यवान् जड़ी में मिल गया। __वह परिश्रम का दिन था; और उस दिन दुःख एवं प्रानन्द का ऐसा सम्मिश्रण हो गया था कि यह कहना कठिन है कि किसका पलड़ा भारी रहा । पुराने और विश्वासपात्र निजी सेवकों को इनाम इकराम देकर विदा करना एक साथ ही दुःखपूर्ण एवं प्रानन्दप्रद कार्य था। इनमें से बहुतों ने तो जब मैंने अधीनस्थ अधिकारी के रूप में काम प्रारम्भ किया था तब से मेरे अवकाश प्राप्त करने के समय तक सेवा की थी और इसी में उनके बाल पक गए थे। जो लोग काले आदमियों में कृतज्ञता एवं स्वामि-भक्ति की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं उनके लिए यह मुंहतोड़ उत्तर है कि मुझे एक भी ऐसा आदमी नहीं मिला जो दीर्घ-काल तक भारत में सेवाएँ करके स्वदेश लौटा हो और जिसने अन्य महान् गुणों के साथ साथ अधीनता, ईमानदारी, गम्भीरता, स्वामि-भक्ति तथा आदरभावना के विषय में तुलना करते हुए एशियावासियों को उत्कृष्ट न बताया हो । ' प्रातराश, नाश्ता। । पैगम्बर मुहम्मद साहब की पुत्री फातिमा और अबु तालिब के पुत्र इमाम अली का लड़का इमाम हुसैन जब सब साथियों के मारे जाने पर अकेला अपने डेरे के बाहर बैठ कर घायल, थका मांदा पानी पीने लगा तो पहली घुट लेते ही शत्रु का तीर पाकर उसके मुंह पर लगा।-गिबन कृत रोम साम्राज्य का पतन, १९५७, भा०५, पृ० २८७। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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