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________________ प्रकरण-१, प्राक्कथन जाते हुए कई बार पार किया था। जब मैंने इसके निकास के बारे में पूछा तो मुझे बताया गया कि 'वह बहुत दूर आबू की तरफ़ पहाड़ियों में है।' 'और आबू कहां है ?' 'उदयपुर से पश्चिम में सिन्धिया की तरफ तीस कोस ।' पाबू बनास के साथ मेरे नक्शे पर उतर अ.या और इस श्रीगणेश के बाद धीरेधोरे मैंने बनास के निकास का और आबू की चोटी का पता लगा ही लिया तथा कुछ ही घण्टों की 'नावयात्रा' के बाद सिन्धु का भी । अपनी प्रस्तुत यात्रा के इन प्रारम्भिक एवं अन्तिम उद्देश्यों के अन्तर्गत मैंने कुछ अन्तरिम उद्देश्य भी स्थिर कर लिए थे, जो बहत हो रुचिकर थे। अरावलो के मार्ग और आबू की तलाश के बाद मेरा विचार पश्चिमी भारत के टायर' (Tyre) प्राचीन नहरवाला की अवशिष्ट खोज को पूरा करने का था; तदनन्तर, वहीं से राणावंश की परम्परात्रों को निर्धारित व निश्चित करने के लिए वलभी की दिशा तलाश करने का भी था। इसके लिए मुझे खम्भात की खाड़ी होकर सौराष्ट्र प्रायद्वीप के किनारे पहुँचना था अतएव मैंने यह निश्चय किया कि यदि हो सके तो जैन धर्म के केन्द्र-स्थल एवं गढ़समान पालीताना और गिरनार के पर्वतों की भी यात्रा करूं और इसके पश्चात् हिन्दुओं की दुनिया के किनारे 'जगतकंट' पहँच कर भारत के सीरिया, द्वारका में स्थित वल (Baal) और कृष्ण के मन्दिरों का दर्शन करके अपनी यात्रा समाप्त कर दू। वहां से जलदस्युओं के बेट द्वीप होता हुमा कच्छ की खाड़ी पार करके जाड़ेचों को राजधानी भुज की यात्रा करूं और माण्डवी की विशाल मंडी को लौट आऊँ। फिर, सिन्धु नदी के पूर्वीय किनारे-किनारे नाव में चलकर इसके समुद्र-संगम तक हिन्दुओं के देवालयों के अन्तिम दर्शन करूं । अन्तिम कार्यक्रम के अतिरिक्त यह सब यात्रा मैंने पूरी कर ली । सत्रह घण्टों तक अनुकूल वायु चलने की दशा में यह भी पूरा हो सकता था; परन्तु कितने ही कारणों से, जिनका वर्णन यथास्थान आगे किया जाएगा, मुझे भारत में अलक्षेन्द्र (Alexander) के आक्रमणों के अन्तिम दृश्यों को बिना देखे ही अपनी समुद्री यात्रा में बम्बई की ओर अग्रसर होना पड़ा। इस प्राक्कथन के साथ अब मैं, पाठकों से अपना डेरा उदयपुर से उठा कर मेरे साथ प्रस्थान करने की प्रार्थना करूंगा। ' फोनीशिया का प्रसिद्ध बन्दरगाह जो पन्द्रहवीं शताब्दी में स्थापित हुआ और जल्दी ही मेडीटरेनियन (मध्य) संसार को प्रसिद्ध मण्डी बन गया। (The New Standard Encyclopaedia, D. 1246) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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