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प्रकरण १: प्राक्कथन
भीडर के मोटे ठाकुर थे जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण उपस्थित कर रहे : थे कि एक सच्चे राजपूत पर निष्पक्ष एवं स्पष्ट व्यवहार का क्या प्रभाव पड़ सकता है ! जब मैंने जागीरदारों और उनके स्वामी (महाराणा) के बीच मध्यस्थता स्वीकार की तब इस ठाकुर के अधिकार में से लगभग तीस कस्बे व गाँव वापस लिए गए थे जिन पर अराजकता के समय में उसने अपने पट्टे की जायदाद के अतिरिक्त कब्जा कर लिया था; और उस समय यही सरदार' उन गाँवों को लौटाने के काम में हाथ बँटा रहा था जिनके कारण उत्पन्न हुए झगड़ेटण्टे पिछले पचास वर्षों से देश में प्रापसी वैमनस्य के मूल बने हुए थे। उसने मुझे कहा, "ज्यादा क्या कहूँ, यदि स्वयं भगवान् भी आकर कोशिश करता तो मेवाड़ में शान्ति स्थापित होना असम्भव था।" ___ मैं अपने इन आनन्ददायक संस्मरणों का और भी विस्तारपूर्वक वर्णन करूँ; परन्तु, मैं समझता हूँ कि अब तक जो मैंने कहा है वही काफी लम्बा हो चुका है। किन्तु, यह बता देना तो आवश्यक ही है कि मेरे स्वास्थ्य की ऐसी गिरीपड़ी दशा में भी यूरोप जाने के लिए किसी निकटतम बन्दरगाह पर सीधा पहँचने की अपेक्षा मैंने यह लम्बी और दुष्कर खोजपूर्ण यात्रा क्यों प्रारम्भ की? ये खोजबीन की बातें, जो किसी निरुद्योगी पुरुष को यकायक थका देने वाली और भयावह प्रतीत होंगी, मेरे लिए राजकाज से अवकाश के समय मन-बहलाव के सौदे बन जाती थीं। प्राय: जब-जब भी राजधानी और अन्य चिन्ताओं से बच कर स्वास्थ्यलाभ के लिए बाहर भागना पड़ता था तब मैं कभी तो अपना तम्बू किसी घाटी के बीच की कुञ्जों में लगवा लेता अथवा विशाल बन्ध... उदयसागर से निकलने वाली बेरियों के निर्गमस्थान पर डेरा डालता या पीछोला के किसी परीलोक के टापू पर एकान्तवास करता और अपने हस्तलिखित ग्रन्थों, वृद्धगुरु अथवा कवि चन्द तथा पृथ्वीराज और प्राचीन योद्धाओं के साथ अपना समय आनन्द से बिताता रहता । मेरा ऐसा स्वभाव और शौक होने के कारण, उन इष्ट पदार्थों के सुलभ होते हए, जो कई वर्षों से मेरे विचारों में चकाचौंध पैदा कर रहे थे, मझे यह निर्णय करने में एक क्षण भी न लगा कि मैं अब उन्हें प्राप्त करने में कुछ और विलम्ब करूँ अथवा सीधा बम्बई के लिए रवाना हो जाऊँ। मैंने गङ्गा और ब्रह्मपुत्र दोनों ही की बाढ़ों का माप किया था
'महाराणा भीमसिंह और सरदारों का पारस्परिक सम्बन्ध स्थिर करने के लिए वि० सं०
१८७५ (१८१८ ई०) में कर्नल टॉड के द्वारा अंग्रेजी सरकार ने जो कौलनामा तैयार कराया था उस पर बेगू के रावत मेघसिंह के पुत्र महासिंह (दूसरे) ने सबसे पहले हस्ताक्षर किए थे । - गो. ही. अोझा कृत उदयपुर का इतिहास, जि. २, पृ. ८६५
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