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प्रकरण. १3 प्राक्कथन
'हाडी रानी' की मनोरम सहेलियों की बाड़ी'' में जा कर रहने लगा था। इस बाड़ी की मनोहर कुंजों और वाटिकाओं का वर्णन अन्यत्र' कर चुका हूँ। जब राणाजी अपने दरबारियों सहित 'अन्तिम बिदाई' देने आए तो मुझे मूर्तियों, शिलालेखों, धातू-पात्रों और हस्तलिखित ग्रन्थों आदि के लिए सन्दूकें बनाने वाले कारीगरों से घिरा देख कर आश्चर्य करने लगे। इस सम्मेलन के अवसर पर सभी के दिल दुःख से भरे हुए थे । यहाँ अब तक ऐसी दशा थी कि कोई भी वर्तमान सरदार 'शत्रु द्वार पर खड़ा है' इस आमन्त्रण पर तुरन्त जाग उठने की तैयारी किए बिना तकिए पर सर रख कर चैन से नहीं सो सकता था; कभी कोई पुराना शत्र 'बैर का बदला लेने आ जाता तो कभी कोई पहाड़ी धाइती आ धमकता अथवा कोई वनवासी भील उसकी गुवाड़ (गोवाट) खाली कर जाता। चिन्ता के ये सभी कारण अब समाप्त हो चुके थे; लुटेरे मरहठा, कर पठान, घर के 'वैरी' और प्रान्तीय लुटेरे पर्वत-पुत्र (मेरोत) अथवा वन-पुत्र (भील)-ये सभी भयभीत हो गये थे और उनकी तलवारें हल की फालों में बदल चुकी थीं; अतः अब सरदार लोग अपने सहज पालस्य में निमग्न हो सकते थे अथवा दोपहर में अमल की पीनक लगा सकते थे; उनके आराम में बाधा डालने वाले किसी शत्रु का भय न था। परन्तु कुछ लोगों को ऐसे शान्ति के
१ यह बाड़ी महाराणा संग्रामसिंह द्वितीय (१७११-१७३४ ई०) ने बनवाई थी। (देखिएवीरविनोद ; पृ० १५४ व ९८१)
उदयपुर में ऐसी किंवदन्ती प्रचलित है कि यह बाड़ी महाराणा संग्रामसिंह ने उन्हें बादशाद फर्रुखशियर द्वारा भेंट-स्वरूप दी हुई सर्केशियन कुमारी दासियों के लिए बनवाई थी। वे कुमारियों आजीवन यहीं रहीं और दूधतलाई पर बनी हुई कब्र उन्हीं की बताई जाती हैं। इन कुमारियों को पोलो खेलने का बहुत अभ्यास था। कहते हैं, उदयपुर के चित्रसंग्रह 'जोतदान' में ऐसे कुछ चित्र हैं जिनमें इनके पोलो खेलने का चित्रण हुआ है। परन्तु इन सब बातों का कोई पुष्ट ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। .
'कुछ पण्डितों का मत है कि इस बाड़ी व आस-पास के स्थान पर 'शैल' नामक घास बहुतायत से होती है इसीलिए इसको 'शैल-वाटिका' कहते हैं । यह 'शैल' घास प्राजकल बरू कहलाती है और इसका करण्ड पहले कलम बना कर लिखने में काम आता था। किन्तु, यह मत भी विद्वानों का बुद्धिविलास मात्र प्रतीत होता है । ___साधारणतया यह माना जाता है कि महारानियों और उनकी प्रतिष्ठित सखियों (सहेलियों) के प्रामोद-प्रमोद के लिए ही इस रमणीय उपवन का निर्माण कराया गया था। • एनल्स एण्ड एण्टीक्विटीज़ आफ राजस्थान (१९२० ई०) • महाराणा भीमसिंह (१७७८-१८२८ ई०)
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