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पश्चिमी भारत की यात्रा ___अपनी इस सर्वाधिक आनन्दप्रद यात्रा का प्रारम्भ करते समय, सर्वप्रथम इङ्गलैण्ड छोड़ने के बाद, मैं अपने प्रवास के बाईस वर्ष पूरे कर चुका था और अगला वर्ष भी प्रायः बीत ही रहा था; इनमें से अट्ठारह वर्ष पश्चिमी भारत की राजपूत जातियों में बीते और पिछले पांच वर्षों में सरकारी राजनैतिक मध्यस्थ (Political Agent to the Government) की हैसियत से मेवाड़, मारवाड़, जैसलमेर, कोटा और बूंदो की पाँच बड़ी तथा सिरोही की एक छोटी रियासत पर मेरा पूर्ण अधिकार रहा । इस भारी जिम्मेदारी के पद पर (जिसे सम्हालने के लिए बाद में चार अलग-अलग एजेण्टों की नियुक्ति हुई) रहते हुए निरन्तर कष्टसाध्य परिश्रमपूर्ण कर्तव्यों में संलग्न रहने के कारण मेरा स्वास्थ्य इतना गिर गया था कि आगामी कार्य-सत्र का निर्वाह भी अशक्य हो जाता। नित्य बारह से चौदह घण्टों तक टंटों झगड़ों में बराबर व्यस्त रहते हुए, प्रत्येक एकान्तर दिवस पर भारी शिरोवेदना को सहन करते हए और निरन्तर श्रम से निवृत्त होना आवश्यक होने पर भी उत्तरदायित्त्व और कार्य से छुटकारा न पाते हुए मैं इस दारुण यातना को भोग रहा था और जीवित था - यही रहस्य मेरे स्वास्थ्य-समीक्षक मित्रों के लिए विस्मय का कारण बना हुआ था। यदि मुझे यह विश्वास न होता कि मेरे इस कठिन परिश्रम से सहस्रों जन उपकृत हो रहे हैं तो निश्चय ही मैं इसे सहन करने में कदापि समर्थ न होता; परन्तु बिदाई के आदेश का भार आ पड़ा था और अतीव दुःख के साथ मुझे उस भूमि से मुख मोड़ना पड़ा जिसे मैंने [मातृभूमि के रूप में] ग्रहण कर लिया था और अंत में जहाँ मैंने सहर्ष अस्थिविसर्जन कर दिया होता।
यदि कभी ऐसा समय आए कि 'दुःख में भी सुख' की प्रतीति हो तो ऐसा तभी होता है जब वह उत्पन्न अथवा अनुभूत होने वाला कष्ट सेवा-भाव का परिणाम हो। भाग्य से मैं ऐसी स्थिति में पहुँच गया था कि मेरे द्वारा कुछ व्यक्तियों का ही नहीं अपितु छोटे-छोटे कई राज्यों का हित-साधन सम्पन्न हो सकता था। गरीबी और आपसो झगड़ों से छुटकारा पाकर खुशहाली एवं राजनतिक शान्तिलाम करने वाले राजा रईसों द्वारा कृतज्ञतावश जो भाव प्रकट किए गए उनके विषय में तो कुछ कहना मेरे लिए शोभनीय न होगा परन्तु देहाती जनता ने जो मुझे 'बाबा' (पिता) उपनाम दिया वह अवश्य ही मेरी , सेवाओं की यथार्थता के लिए निर्दोष प्रमाण माना जा सकता है।
तैयारी में एक पखवाड़ा बीत गया। मिलने जुलने वालों के कारण अधिक अड़चन न पड़े इसलिए मैं राजधानी से उत्तर की ओर कोई एक मील दूर
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