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अपनी इच्छाओं को अप्रतिहत गति से भागने दिया, और जो उनका गुलाम बनकर रहा, जिसने इच्छाओं पर नियन्त्रण नहीं किया, इच्छाओं का परिमाण भी नहीं बांधा, और जो परिग्रह के ही चंगुल में फँसा रहा, जो महारम्भ और महापरिग्रह की भूमिका पर रहा, वह नरक नहीं पाएगा तो क्या पाएगा?
___ तो, सबसे बड़ी बात यही है कि मनुष्य स्वर्ग और मोक्ष पाने के लिए अपनी निरंकुश इच्छाओं पर अंकुश स्थापित करे, अपनी लालसा को जीते और सन्तोषशील होकर जीवन-यापन करे । फिर उसे अपने भविष्य के सम्बन्ध में किसी से पूछने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी । 6
- जीवन का भगवान् तो अपने अन्दर ही है । तू प्रभु को प्यार
। एक सन्त ने कहा है- तू प्रभु को प्यार करना चाहता है तो
करना चाहता है तो सबसे पहले यह देख सबसे पहले यह
कि तू प्रभु की सन्तान को प्यार करता है देख कि तू प्रभु की
| या नहीं ? यदि प्रभु की सन्तान से प्यार सन्तान को प्यार
नहीं किया तो प्रभु से क्या प्यार कर सकेगा? करता है या नहीं ?
जो, प्रभु के पुत्रों के गले काटे और प्रभु के
चरणों पर उनकी भेंट चढ़ावे । क्या वह प्रभु से प्यार करता है ? और क्या वह प्रभु के प्रसाद को पाने की आशा करता है ? जो इस महत्वपूर्ण प्रश्न को नहीं समझ लेगा, उसका जीवन कभी भी आदर्श जीवन नहीं बन सकता ।
तो भगवान् महावीर ने कहा कि अपने कर्तव्यों को देखो कि तुमने क्या किया है, क्या कर रहे हो और क्या करना चाहिए ? याद रखो, तुम्हारे दुष्कार्य तुम्हारे जीवन का नक्शा नहीं बदल सकते है;
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