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________________ तक जीवन है, सुख-दुख आते ही रहेंगे, तदनुसार इच्छाओं का प्रवाह बहता ही रहेगा । मनुष्य के हृदय सागर में इच्छाओं कि अनेक विध तरंगें उठती हैं, मानव को उनकी पूर्ति के लिए दौड़-धूप भी करनी होती है । किन्तु सवाल यह है कि उन इच्छाओं को तोला जाय कि कौनसी इच्छाएँ पूर्ति करने योग्य हैं और कौनसी निरर्थक हैं, जिन्हें छोड़ देना चाहिए । सबसे पहले इस विषय पर चिन्तनमनन करना चाहिए कि कौन सी इच्छाएँ जीवन यात्रा में आवश्यक है, जिनके बिना जीवन में संतुलन नहीं रह सकता और कौन सी इच्छाएँ अनावश्यक हैं, जिनसे जीवन में एक निरर्थक भार बढ़ता है, व्यर्थ की परेशानी होती है । योग्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जीवन में कुछ न कुछ संघर्ष करना ही होगा और शेष अनावश्यक इच्छाओं की गन्दगी और भार को हटाकर सफाई करनी होगी । मन के अन्दर प्रतिदिन असंख्य इच्छाएँ जन्म लेती हैं और मर कर समाप्त हो जाती हैं I मन एक प्रकार से मृत इच्छाओं का श्मशान बना रहता है । उनमें अधिकतर इच्छाएँ ऐसी होती है जिनका कोई अर्थ नहीं होता, जीवन में कोई उपयोग नहीं होता, वे सिर्फ राग-द्वेष के चक्र की धुरियाँ मात्र होती है, उनकी गन्दगी भर कर मन को गन्दा नहीं करना है 1 किसी मन के अन्दर प्रतिदिन असंख्य इच्छाएँ जन्म लेती है और मरकर समाप्त हो जाती है । मन एक प्रकार से मृत इच्छाओं का श्मशान बना रहता है । केरु मन तो एक खेत के समान है, जहाँ धान के साथ अनेक प्रकार का घास-फूस भी पैदा होता है । किसान जब खेत में बीज डालता है, तो उसकी भावना का वास्तविक केन्द्र तो अनाज रहता है । उसके 178
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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