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साथ-साथ घास-फूस आदि चीजें भी अपने आप पैदा हो जाती हैं । वे खेत के लिए सिर्फ अनावश्यक ही नहीं अपितु हानिकारक भी होती हैं । यदि उन्हें अच्छी तरह साफ नहीं किया जाय तो खेत में उनका एक भीषण जंगल ही खड़ा हो जाएगा और इसका अंतिम परिणाम यह होगा कि जो बीज वास्तव में किसान ने बोए हैं और जिनके उगने पर ही किसान का, समाज और देश का भविष्य निर्भर करता है, उन्हें उचित पोषण ही नहीं मिल सकेगा। खेत की उपजाऊ शक्ति उन बीजों को ही मिलनी चाहिए, उनका ही विकास होना चाहिए, परन्तु खेत में पैदा हुए निरर्थक घास आदि की सफाई न की जाए तो वह घास उन पौधों का शोषण करेगी। अन्न को ठीक मात्रा में पैदा नहीं होने देगी। यही स्थिति मन की खेती की भी है। उसमें भी संकल्पों के बीज डाले जाते हैं, किन्तु मनुष्य की जरा सी असावधानी के कारण गलत इच्छाओं के घासों से मन का खेत भर जाता है । यदि उन्हें ठीक समय पर दूर नहीं किया जा सकता तो वास्तविक इच्छाओं को, चाहे वह आध्यात्मिक हों, पारिवारिक हों, सामाजिक तथा राष्ट्रीय हों, जो भी हों- जैसा उचित पोषण मिलना चाहिए, नहीं मिल पाएगा। पोषक-तत्त्वों को वे निरर्थक इच्छाएँ ही हजम कर जाएँगी । अतः आवश्यकता इस बात की है कि प्रबुद्ध मानव को अपने अन्दर में इच्छा का विश्लेषण करने की शक्ति पैदा करनी चाहिए, उनके सही और गलत रूपों के पहचान का द्रष्टा बनना चाहिए, इसलिए मन के अन्दर झाँकने और अपने आप को परखने की आवश्यकता है । दो प्रतिक्रियाएँ:
इच्छाओं के फलस्वरूप मन में जो प्रतिक्रियाएँ होती हैं, वे दो प्रकार की हैं- कुछ लोग तो इच्छाओं की पूर्ति करना चाहते हैं । पूर्ति के द्वारा इच्छाओं को शान्त करके आनन्द पाना, यह एक प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया
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