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व्यक्तित्व दर्शन
श्रमरण : समता का प्रतीक
इन्द्रभूति गौतम का तलस्पर्शी ज्ञान गांभीर्य अपने आप में जिस रिक्तता का अनुभव कर रहा था, उसकी पूर्ति भगवान महावीर की हृदयस्पर्शी वाणी ने कर दी। गौतम अब अपने पांडित्य की कृतकृत्यता अनुभव कर रहे थे। वे शुष्क क्रिया काण्ड से मुक्त होकर आत्मसंयम एवं आत्मनिदिध्यासन के आनन्द मार्ग की ओर बढ़ चुके थे । भगवान महावीर ने उनके मन की कुण्ठाओं को तोड़कर जिस विशद ज्ञान की कुजी रूप त्रिपदी का ज्ञान उन्हें दिया, उससे गौतम के अन्तस् का समस्त अन्धकार दूर हुआ और एक दिव्य प्रकाश सर्वत्र बिखर गया। जिस प्रकार सूर्य के अनन्त आलोक को कोई सघन कृष्ण आवरण रोक रहा हो, और वह जैसे ही हट जाये वैसे ही अन्धकार के स्थान पर प्रकाश व्याप्त हो जाये ऐसा ही कुछ गणधर गौतम के समक्ष हुआ । वेद उपनिषद् आदि चतुर्दश विद्याओं का पारगामी अध्ययन कर लेने पर भी वे अपने आप को किसी अन्धकार में भटकते हुए अनुभव कर रहे थे, हृदय में एक रिक्तता, जीवन में एक शून्यता अनुभव कर रहे थे। भगवान महावीर ने प्रथम परिचय में ही गौतम के हृदय को टटोललिया, उनकी आत्मा की धड़कन को पहचाना और श्रु त-शील के माधुर्य पूर्ण मार्ग का उपदेश दिया। गौतम के पास ज्ञान की कमी नहीं थी, किन्तु दृष्टि पर एक आवरण था, ऐकान्तिक आग्रह था। चारित्र के
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