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खण्ड: ४
व्यक्तित्व दर्शन
श्रमण : समता का प्रतीक.
बाह्य व्यक्तित्व. सुन्दरता : एक पुण्य प्रकृति. शरीर की ऊँचाई और संहनन.
मधुर व्यवहार.
तपः साधना. स्वावलम्बी श्रमरण.
दिनचर्या. दीप्त तपस्वी. उर्ध्वरेता ब्रह्मचारी.
विदेहभाव.
तपोलब्धि. गौतम की ज्ञान संपदा.
मानसज्ञानी. विनम्रता की मूर्ति. सरलता का अक्षय स्रोत.
मधुर आतिथ्य. निर्भीक शिक्षक.
कुशल उपदेष्टा. प्रबुद्ध संदेशवाहक. अनन्य प्रभु भक्त. मुक्ति का वरदान.
महान जिज्ञासु.
सराग उपासना. पावा में अंतिम वर्षावास.
कैवल्य एवं निर्वाण.
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