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________________ भारतीय चिन्तन की पृष्ठभूमि इन्द्रभूति का संशय इन्द्रभूति गौतम अपने युग के, अपनी परंपरा के एक समर्थ एवं प्रभावशाली विद्वान थे। श्रमण भगवान महावीर की ख्याति, देवकृत अतिशय एवं सर्वज्ञता की बात उनके हृदय को अज्ञात रूप से उनके प्रति आकृष्ट करने लगी थी। उनकी अन्तश्चेतना में प्रबल जिज्ञासा थी, किसी भी विषय को, नवीन तथ्य को समझने-परखने के लिए वे सदा उत्सुक रहते यह उनका सहज स्वभाव था, जो आगमों में स्थान-स्थान पर आए उनके प्रश्नों से ध्वनित होता है। प्रत्यक्ष रूप में भले ही वे अपनी परम्परा के प्रतिरोधी श्रमण भगवान महावीर की ओर वाद विवाद की भावना लेकर बढ़े हों, उन्हें पराजित कर अपनी विद्वत्ता एवं प्रभाव का डंका चारों ओर बजाने की भावना उनमें रही हों, किन्तु आगे की घटना स्पष्ट कर देती है कि उनके भीतर जीवित ज्ञान चेतना थी, सत्य की प्रबल जिज्ञासा थी, जो जीर्ण-शीर्ण परम्परा के मोह को, क्षण भर में नष्ट करके ज्ञान का विमल आलोक प्राप्त कर धन्य हो गई। प्राचीन आगम ग्रन्थों एवं कल्पसूत्र तक में इस बात का कोई वर्णन नहीं है कि इन्द्रभूति जैसे विद्वान भगवान महावीर के पास किस कारण से आए, कैसे प्रबुद्ध होकर प्रवजित हो गए ? सर्वप्रथम आवश्यकनियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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