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________________ परिसंवाद १३९ भगवान गौतम ! जब घोड़ा दौड़ता है तब उसके हृदय एवं यकृत् के बीच में 'कर्कट' नामक वायु उत्पन्न होता है, उस वायु के कारण 'खु-खु' शब्द उठता है ।५६ जम्भक देव गौतम स्वामी ने पूछा-भगवन् ! जृम्भक देव, जृम्भक (स्वच्छंदचारी) क्यों कहलाते हैं ? भगवान-गौतम ! उनका स्वभाव हमेशा प्रमोदयुक्त होता है, वे अत्यंत क्रीड़ाशील, आनंदी, कंदर्प-रतिप्रिय, एवं तीव्र काम स्वभाव वाले होने के कारण वे जृम्भक (स्वच्छंदचारी) कहलाते हैं ।५७ तीर्थ और तीर्थंकर गौतम स्वामी ने पूछा-भगवन् ! तीर्थ को तीर्थ कहा जाता है या तीर्थंकर को तीर्थ ? भगवान-गौतम ! अर्हत् तो अवश्य ही तीर्थंकर हैं, परन्तु चार प्रकार का श्रमण प्रधान संघ–साधु, साध्वी, श्रावक श्राविका रूप यह तीर्थ है ।५८ दर्शन कितने ? गौतम स्वामी-भगवन् ! समवसरण (दर्शन-मत) कितने हैं ? भगवान गौतम ! समवसरण (मत-दर्शन) चार हैं-क्रियावादी, अक्रियावादी अज्ञानवादी और विनयवादी ।५९ ५६. भगवती १०३ ५७. भगवती १४८ ५८. भगवती २०१९ ५९. विशेष विवरण के लिए देखें-सूत्र कृतांग १।१२। आचारांग १११। भगवती ३०१ आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003429
Book TitleIndrabhuti Gautam Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshmuni, Shreechand Surana
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1970
Total Pages178
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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