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इन्द्रभूति गौतम
कुछ ऊपर उठने लगता है । धीरे-धीरे जब समस्त लेप उतर जाते हैं तो तुम्बा अपने मूल रूप में आ जाता है और पानी की ठीक ऊपर की सतह पर स्वतः ही तैरने लग
जाता है।"
__"इसी प्रकार आत्मा के कर्म जब कुछ क्षीण होते हैं, तो वह ऊपर उठने लगता है । जब समस्त कर्म-मल क्षीण हो जाते हैं, तो आत्मा संसार से सर्वतोभावेन ऊपर उठ आता है, लोकाग्र में स्थित होकर सिद्ध, बुद्ध, निरंजन, निर्विकार परमात्मा हो जाता है । यही आत्मा का लघुत्व (हल्कापन) है ।
गौतम की जिज्ञासा शान्त हुई । वे श्रद्धावनत होकर कह उठे-'भन्ते ! यह सत्य कहा आपने ।३६
कर्मफल विषयक
__ गणधर गौतम द्वारा स्थान-स्थान पर कर्मफल-विषयक अर्थात् किसी मनुष्य या देव की समृद्धि देखकर अथवा किसी मनुष्य को घोर कष्ट पाता देखकर उसके विगत जीवन से सम्बन्धित प्रश्न किये गये हैं।
प्रदेशीराजा
रायपसेणी सूत्र का पूरा प्रदेशीप्रकरण गौतम के प्रश्न का उत्तर है। सूर्याभ देवता जब भगवान महावीर के समवसरण में अपनी विशाल ऋद्धि एवं दैविक
३६. ज्ञाता धर्मकथा ६ ३७. प्रदेशी राजा के वर्णन की तुलना के लिए देखें बौद्ध ग्रथ-‘पयासि राजन्य सुत्त'
(दीघनिकाय २३)
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