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" गौतम ! इसी प्रकार जो मुमुक्ष श्रमण-धर्म स्वीकार करके क्षमा आदि दश धर्मों का आत्मा में विकास करता जाता है, वह आत्मा की उच्च से उच्चतर और उच्चतम भूमिका को प्राप्त करता चला जाता है ।"
परिसंवाद
"आत्मा के विकास और ह्रास का रहस्य जान कर गौतम ने प्रभु को वन्दन सत्य है प्रभु आपका कथन । ३५
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करते हुए कहा
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I
एकबार भगवान् महावीर राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में विराजमान थे । गणधर गौतम भगवान के पास आए, विनयपूर्वक बद्धाञ्जलि होकर पूछा, - "भन्ते ! यह आत्मा कभी गुरुत्व (भारीपन ) और कभी लघुत्व ( हल्कापन ) प्राप्त करता है, इसका क्या रहस्य है ?
उत्थान और पतन का रहस्य
भगवान ने इस गुरु गम्भीर प्रश्न को एक रूपक देकर समझाया - " गौतम ! कोई मनुष्य एक सूखे हुए छिद्र रहित तुम्बे को दर्भ (डाभ) आदि से वेष्टित कर उस पर मिट्टी का एक लेप करता है और उसे धूप में सुखा देता है । जब वह पहला लेप सूक जाता है, तो पुन: उसी प्रकार तुम्बे पर दूसरा लेप करता है और उसे भी सुखा
ता है । इस क्रम से वह आठ लेप उस तुम्बे पर करता है और सुखा लेता है । पश्चात् वह पुरुष उस तुम्बे को किसी गहरे पानी की सतह पर छोड़ देता है तो क्या वह तुम्बा तैरेगा या डूब जाएगा ?"
"भंते ! वह तो डूब ही जाएगा ।"
" गौतम ! उसी प्रकार यह आत्मा जब हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य, कषाय आदि असत् प्रवृत्ति रूप पाप कर्म करता है, तो ज्ञानावरण आदि आठ कर्म रूप पुद् गल का लेप अपने ऊपर लगा लेता है, और उसी कर्म रूपी लेप के कारण वह गुरुत्व ( भारीपन ) प्राप्त करके नरक, तिर्यच गति रूप संसार समुद्र में डूब जाता है ।"
" और जब उस तुम्बे पर से दर्भ आदि के बन्धन सड़गल कर टूटने लगते हैं, मिट्टी के लेप साफ होते जाते हैं, तो वह तुम्बा जलाशय की जमीन की सतह से कुछ
३५. ज्ञाता धर्मकथा १०
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