________________
१०२
इन्द्रभूति गौतम राजा ने भगवान की स्तुति की। भगवान ने सोलह प्रहर की देशना दी ।९०° उस दिन भगवान छट्ठ भक्त से उपोसित थे ।१०८ देशना के पश्चात् अनेक प्रकार की प्रश्न चर्चाएँ हुई। राजा पुण्यपाल ने अपने आठ स्वप्नों का फल पूछा, उत्तर सुनकर वह संसार से विरक्त हुआ। १०९ फिर गणधर गौतम ने पाँचवें आरे के सम्बन्ध में प्रश्न किये"भंते ! आपके परिनिर्वाण के पश्चात् पाँचवा आरा कब लगेगा ?"
भगवान ने उत्तर दिया--"तीन वर्ष साढ़े आठ मास बीतने पर।” आगामी उत्सर्पिणी में होने वाले तीर्थकर, वासुदेव, बलदेव, कुलकर आदि का भी सामान्य परिचय गौतम के उत्तर में भगवान ने दिया। तदनन्तर गणधर सुधर्मा ने प्रश्न किया और उनका भी उत्तर भगवान ने दिया ।
देवराज इन्द्र ने भगवान के परिनिर्वाण का अंतिम समय निकट आया देखकर अश्रु पूरित नयनों से प्रभु से प्रार्थना की-“भगवन् ! आपके जन्मनक्षत्र (हस्तोत्तरा) में भस्मग्रह संक्रमण कर रहा है, उसका दुष्प्रभाव दो हजार वर्ष तक आपके धर्मसंघ पर रहेगा, अतः आप कुछ काल के लिए अपने आयुष्य की वृद्धि करें।"
देवराज के उत्तर में भगवान ने कहा- "शक । आयुष्य कभी बढ़ाया नहीं जा सकता।"११०
गौतम को कैवल्य
उसीदिन भगवान ने देखा–आज मेरा निर्वाण होने वाला है, मुझ पर गौतम का अत्यंत अनुराग है, इसी अनुराग के कारण मृत्यु के समय वह अधिक शोक विह्वल न हो, और दूर रहकर अनुराग के बंधन को तोड़ सके अत: देवशर्मा नामक ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के लिए अन्यत्र भेज दिया। "अज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया" गुरूजनों की आज्ञा शिष्य को अविचारणीय एवं अतर्कणीय होती है । गौतम ने प्रभु का आदेश शिरोधार्य किया और देवशर्मा को प्रतिबोध देने चल पड़े।
१०७. सौभाग्य पंचम्यादि पर्व कथा संग्रहः पत्र १०० १०८. कल्पसूत्र सूत्र १४७, महावीर चरियं (नेमिचन्द्र) पत्र ९९ १०९. विस्तार के लिए देखिए-तीर्थंकर महावीर भा० २ पृ० २९५ (विजयेन्द्र सूरि) ११०. स्वाम्यूचे शक्र ! केनापि नायुः सन्धीयते क्वचित् ।
--कल्पसूत्र, कल्पार्थ प्रबोधिनी पत्र १२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org