________________ धन दौलत पाकर भी सेवा, अगर किसी की कर न सका / दया भाव ला दुःखित दिल के जख्मों को जो भर न सका / / वह नर अपने जीवन में, सुख-शान्ति कहाँ से पाएगा? ठुकराता है, जो औरों को, स्वयं ठोकरें खाएगा। प्रकाशक : सुगाल एण्ड दामाणी 11, पोनप्पा लेन, ट्रिप्लीकेन, चेन्नई -5. * Rs. 50/ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org