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पारिपाश्विक मुनिवर जितने, सभी निरंजन, विज्ञानी, सभी लब्धि-धर, जग विरक्त हैं, प्रेम, आस्था, वरदानी, मुनि अखिलेश वन्द्य, करूणा - धन, सखा मनीषी ज्योतिर्थरहोती आत्मा स्वयं विभासित सुन इनकी तात्विक - वाणी । आए ये सुदूर गिरि-व्रज में रघुवर संग लक्ष्मण बन कर, मंगल मूर्ति, श्रमण गरिमा गृह, श्रुत-तत्वज्ञ, ज्ञान-निर्झर ।
तपःपूत व्यक्तित्व खोजने कवि, न दूर तुम को जाना, न ही तुम्हें चन्दनबाला का आश्रव-संवर दुहराना, विदुषी, साध्वी - रत्न चन्दना, यहाँ लोक-सेवा में रतशुचि महत्तरापद अधिकारिणि इन्हें विज्ञ- जन ने माना । मानवतावादी दर्शन में इनसे नव अध्याय जुड़ा, नमन करो, करूणा - प्रवाह फिर आर्त जगत की ओर मुड़ा । पा गुरूवर से ज्ञान - सम्पदा, जो प्रबुद्ध, जो गत संशय, कवि, विश्रुत ये वीर धरा के सौम्य तपी मुनिवर्य विजय, श्रमण-संस्कृति समय समन्वित हुई पुनः इनको पाकरअन्ध मान्यता उन्मूलन में ये अविचल उर, चिर निर्भय । जीवन और जगत पर करता मानव-मन अनुक्षण चिन्तन, आत्म-रूप की झलक दिखाता सब को एक श्रमण-दर्शन ।
शत-शत रम्य नगर है सम्प्रति इस अरण्य पर न्योछावर, गुरूवर-पद-नख ज्योति प्राप्त कर ज्योति भरित भूतल - अम्बर, वही ब्रह्मपुर क्षीरोदधी में गिरा - इन्दिरा अब रहती दिव्य महासतियों में दर्शित छवि उनकी मंगल, मनहर । पावन 'सुमति' 'साधना' 'सुयशा' संस्कृति बीज यहाँ बोलींसहज 'चेतना' 'विभा' 'शुभा' उर नित कलि- कल्मष हैं धोतीं ।
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