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वीर - वन्दना महावीर अतिवीर जिनेश्वर,
वर्धमान जिनराज महान् । गुण अनन्त, हर गुण अनन्त तव,
नहीं अन्त का कहीं निशान ।। कब से तेरा चित्र लिए जग,
खोज रहा तव रूप-समान । मिला न कोई, थके सभी हैं,
तेरी-सी बस तेरी शान ।। तन के मानव पतित हुए थे,
मन-मानवता अन्तर्धान । तू ने जागृत कर मानवता,
किया मनुज का पुनरूत्थान ।। आत्मा में ही परमात्मा का,
____ अनुपम है ज्योतिर्मय स्थान । जागो, उठो, स्वयं को पाओ,
यह था तेरा तत्व-ज्ञान ।। मानव-मानव सभी एक हैं,
झूठा है सब भेद-विज्ञान । जन्म नहीं, शुभ कर्म दिव्य है,
गूंज उठा तव मंगल गान ।।
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