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वह जाता है मात्र मोक्ष को । और मोक्ष है,
'स्व' का 'स्व' में
सदा-सदा के लिए निमज्जन !
'मैं' 'तू' में मिल जाए,
'तू' 'मैं' में मिल जाए, प्राण-प्राण में सदा-सदा को निजता ममता घुल-मिल जाए,
जो भी है समरस हो जाए,
यह अनुपम अद्वैत योग ही जिन - दीक्षा का विमल योग है !
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