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आशीर्वचनम् जैन समाज के हितचिन्तक, कविरत्न, राष्ट्रसन्त, परम श्रद्धेय गुरूदेव, उपाध्याय श्री अमरमुनिजी म. सा. की वाणी 'सूक्त-वाणी' थी। गागर में सागर समाहित कर लेना, उनकी वाणी की सहजरूपेण विशेषता थी। उनके वस्त्र तो श्वेत थे ही, उनका मानस भी अति शुभ्र एवं उज्ज्वल था । जो भी चिन्तन की बदली में कौंधा, उसे विचारों की वर्षा में परिणित कर जन-जन के समक्ष प्रस्तुत कर दिया ।
गुरुदेव श्री के विचार, उस समय जितने सामयिक थे, उतने ही आज भी सामयिक है। कवि, विचारक एवं समाज का हितचिन्तक मरण-धर्म को प्राप्त हो जाने के बाद भी सदैव कालजयी होता हैअपने साहित्य एवं कवित्व के माध्यम से । गुरुदेव भी अमर थे, अमर हैं तथा अमर ही रहेंगे, क्योंकि उनका साहित्य भी कालजयी है ।
गुरुदेव श्री के साहित्य-सागर में से कतिपय अमृत-कणों को, श्रीमान् सुगालचन्दजी सिंघवी, चेन्नई - जो वीरायतन की विचारधारा से विगत दो दशकों से जुड़े हुए हैं तथा पदाधिकारी भी हैं - ने संकलन कर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है ।
ये लघु कविताएँ एवं मुक्त छन्द जीवन एवं विचारों को और अधिक सुन्दर एवं रमणीय बनाने में अवश्य ही सहभागी बनेंगे ।
भविष्य में भी, आप इसी प्रकार गुरुदेवश्री के साहित्य के प्रचार-प्रसार में निरन्तर सहभागी बने रहेंगे । इसी आशीर्वचन के साथ
- आचार्य माँ चन्दना
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