SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षट् अनन्त १. सिद्ध २. सूक्ष्म और बादर निगोद के जीव ३. वनस्पति अनन्त वनस्पति जीव ४. काल तीनों कालों के समय ५. पुद्गल परमाणु ६. अलोकाकाश छह बोल करने में कोई समर्थ नहीं १. जीव को अजीव बनाने में २. अजीव को जीव करने में ३. एक साथ सत्य और असत्य भाषा बोलने में ४. कृतकर्म का फल अपनी इच्छानुसार भोगने में ५. परमाण का छेदन-भेदन करने में ६. लोक से बाहर जाने में आवश्यक के छह भेद १. समता सामायिक समत्व योग २. स्तव स्तुति तीर्थंकरों की ३. वन्दन नमस्कार गुरु को ४. प्रतिक्रमण आलोचना दोषों की ५. कायोत्सर्ग ममता त्याग शरीर का ६. प्रत्याख्यान अनागत का संवर प्राकृत भाषा के छह भेद १, मागधी २. अर्धमागधी ३. शौरसेनी ४. महाराष्ट्री ५. पैशाची ६. अपभ्रंश भाषा ( १७१ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003427
Book TitleJain Darshan ke Mul Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year1989
Total Pages194
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy