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निक्षेप
निक्षेप का अर्थ है- न्यास । वस्तु का यथार्थ अर्थ समझने के लिए निक्षेप की आवश्यकता होती है । निक्षेप के चार भेद होते हैं -
१. नाम-लोक व्यवहार चलाने के लिए गुण आदि की अपेक्षा न रखकर, किसी पदार्थ की संज्ञा रखना, नाम रखना-नाम निक्षेप होता है । जैसे किसी बालक का नाम, महावीर रखना। यहाँ पर बालक में वीरता गुण की अपेक्षा नहीं है । संज्ञा, नाम एवं संकेत भर किया है।
२. स्थापना- किसी वस्तु में अर्थात् प्रतिकृति में, मूर्ति में अथवा अक्ष-पासा आदि में मूल वस्तु की परिकल्पना कर लेना, स्थापना होती है। वह दो प्रकार की है- तदाकार और अतदाकार । जैसे जम्बूद्वीप के चित्र को जम्बू द्वीप कहना । शतरंज के मोहरों को गज, अश्व, वजीर कहना ।
३. द्रव्य- किसी पदार्थ की भूत और भविष्यत् पर्याय के नाम का वर्तमान में व्यवहार करना, द्रव्य निक्षेप है। जैसे राजा के मृतक शरीर में यह राजा है-इस प्रकार भूत पर्याय का व्यवहार करना । भविष्य में राजा होने वाले युवराज को वर्तमान में यह राजा है, यह कथन करना ।
शास्त्र का ज्ञाता, जब उस शास्त्र के उपयोग से शून्य होता है, तब उसका ज्ञान, द्रव्य ज्ञान कहाता है । शास्त्र में कहा है-"अनुपयोगो द्रव्यम्" अर्थात् उपयोग न होना, द्रव्य होता है। जैसे सामायिक का ज्ञाता, जिस समय सामायिक के उपयोग से शून्य है । उस समय उसका सामायिक ज्ञान, द्रव्य सामायिक ज्ञान कहा जाता है।
४. भाव-पर्याय के अनुसार, वस्तु में शब्द का प्रयोग करनाभाव निक्षेप होता है। जैसे राज्य करते हुए मनुष्य को राजा कहना । सामायिक के उपयोग वाले को सामायिक-ज्ञाता-कहना।
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