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११२ | जैन-दर्शन के मूलभूत तत्त्व
दृश्य वस्तु केवल जगत् है। जीव और परमात्मा अदृश्य हैं। उन दोनों का समाधान होना, तो अति कठिन है । लेकिन जगत् जो अति स्थूल है, एवं दृश्य वस्तु है, उसके भी गहन रहस्यों समाधान अभी तक नहीं हो पाया। फिर भी दार्शनिक लोग इन समस्याओं को सुलझाने का समयसमय पर प्रयास करते ही आ रहे हैं ।
यूनान के अनेक दार्शनिक हुए हैं, लेकिन सुकरात, प्लेटो और अरस्तू के युग में दर्शनशास्त्र ने आश्चर्यजनक प्रगति एवं विकास किया था। यूरोप के दर्शन का मूल आधार वही था । अरस्तू ने तो दर्शन-शास्त्र को परमोच्च स्थान प्रदान करा दिया था।
अरस्तू के बाद और नूतन युग के मध्य में जो विचारक थे, वे दार्शनिक नहीं, मात्र समाज-सुधारक थे । ज्ञान और तर्क को छोड़कर वे लोग आस्था एवं विवेक का उपदेश दिया करते थे। अतः वे लोग धार्मिक थे । धर्म का ही प्रसार तथा प्रचार किया करते थे। अपनी सम्प्रदाय के कल्याण को ही वे अपना कल्याण समझते थे। मसीहा के धर्म के प्रचारक थे।
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