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जीव-द्रव्य | १११
अरस्तू के चार कारण १. प्रथम कारण है-उपादान । किसी वस्तु का उपादान कारण उस द्रव्य या पदार्थ को कहा जाता है, जिससे वह वस्तु बनती है। उपादान कारण उस कच्ची सामग्री को कहा जाता है, जो बाद में वस्तु का रूप ग्रहण कर लेती है। उदाहरणतः एक घट के निर्माण के लिये मिट्टी उसका उपादान कारण है । मिट्टी से घड़ा बनता है ।
२. निमित्त कारण-किसी घटना के घटित होने में या किसी वस्तु के निर्माण में जो सहायता देने वाला हो, उसे निमित्त कारण कहते हैं। निमित्त कारण द्वारा ही परिवर्तन सम्भव होता है। मिट्टी से घड़े का निर्माण करने में कुम्हार निमित्त कारण होता है।
३. स्वरूप कारण-अरस्तु के अनुसार स्वरूप कारण का सम्बन्ध वस्तु के सार या मूल तत्त्व से है। घड़े के निर्माण के संदर्भ में कुम्हार के मस्तिष्क में उपस्थित घड़े का प्रत्यय ही घड़े का स्वरूप कारण है। स्वरूप का होना, परम आवश्यक है।
४. लक्ष्य कारण-लक्ष्य कारण वह साध्य है, जिसके लिए कारणता की पूरी प्रक्रिया चलती है । लक्ष्य कारण की ओर उन्मुख होकर वस्तु की रचना की प्रत्येक क्रिया की जाती है। घड़े की रचना की प्रक्रिया के संदर्भ में, पूर्ण घड़ा ही लक्ष्य कारण है ।
अरस्तू की कारण-मीमांसा प्रसिद्ध है। तर्कशास्त्र का मूल आधार ही कार्य-कारण भाव को माना गया है । अरस्तू दार्शनिक के साथ तार्किक भी था। दर्शन और तर्क के बाद वह विज्ञान की ओर भी अपने कदम बढ़ाता रहा। उसने अपने ज्ञान की सीमाओं को चारों ओर से बढ़ाया था । अरस्तू ने सूकरात और प्लेटो दोनों की आलोचना की है। अरस्तु अपने युग का एक महान व्यक्तित्व था। ज्ञान और शिक्षा के किसी भी क्षेत्र को उसने अपने अस्तित्व काल में अछूता नहीं छोड़ा।
दर्शन-शास्त्र की समस्या दर्शनशास्त्र पूर्वी हो, या पश्चिमी, उन दोनों की एक समस्या हैजीव, जगत और परमात्मा की व्याख्या, अवस्था और व्यवस्था करना । यूनान के दर्शन में तीनों समस्याएँ विद्यमान हैं। विभिन्न युगों में प्रकारान्तर से इन्हों का समाधान दार्शनिक करते रहे हैं । ज्ञान-मीमांसा और पदार्थ मीमांसा-ये सब उसके अंगभूत हैं।
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