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पाँचवाँ अध्याय
४०-जो सदा द्रव्य के आश्रित रहते हों और स्वयं गुणों से रहित हों, वे गुण हैं।
४१-स्वरूप में स्थित होते हुए भी उत्पाद एवं विनाशरूप परिणमन होना, परिणाम हैं।
४२-वह परिणमन अनादि और सादि दो प्रकार का होता है।
४३–रूपी द्रव्यों में सादि परिणमन होता है।
४४-जीवों में योग और उपयोगरूप परिणमन सादि है।
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