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________________ तीसरा अध्याय .. २७ ८-वे सभी द्वीप और समुद्र, वलय = कंगन जैसी गोल आकृति वाले, पूर्व-पूर्व को वेष्टित करने वाले और दूने-दूने विष्कम्भ= व्यास अर्थात् विस्तार वाले हैं। ९-उन सब के बीच में जम्बूद्वीप है, जो वृत्त= कुम्हार के चाक के समान गोल है, लाख योजन विष्कम्भ वाला है और जिसके मध्य में मेरुपर्वत है। १०–जम्बूद्वीप में भरतवर्ष, हैमवतवर्ष, हरिवर्ष, विदेहवर्ष, रम्यकवर्ष , हैरण्यवतवर्ष, ऐरावतवर्ष,-ये सात क्षेत्र हैं। ११-उन क्षेत्रों को पृथक् करने वाले और पूर्व-पश्चिम लम्बे हिमवान् महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मी, और शिखरी-ये छह वर्षधर पर्वत हैं। १२–'धातकीखण्ड' नामक दूसरे द्वीप में भरत आदि क्षेत्र और हिमवान् आदि पर्वत दो-दो हैं। १३---पुष्करद्वीप के आधे भाग में भी धातकीखण्ड के समान भरत आदि क्षेत्र और हिमवान् आदि पर्वत जम्बूद्वीप से दुगुने हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003426
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2001
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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