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________________ तीसरा अध्याय तीसरा अध्याय २५ शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, १. - रत्नप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा और महातमः प्रभा ये सात नरक भूमियाँ हैं। जो घनाम्बु, घनवात और आकाश पर स्थित हैं, एक दूसरे के नीचे हैं तथा नीचे की ओर अधिक विस्तीर्ण हैं। २ –उन भूमियों में नरक हैं, अर्थात् नारक जीव रहते हैं। ३ – वे नारक नित्य अशुभतर लेश्या, परिणाम, शरीर, वेदना और विक्रिया वाले हैं। ४— और ये परस्पर उत्पन्न किये गए दुःख वाले होते हैं। ५ - तथा संक्लिष्ट परिणाम वाले असुरजाति के परमाधर्मी देव भी चौथे नरक के पहले पहले अर्थात् तीसरे नरक तक अनेक कष्ट पहुँचते हैं। ६. -उन नरकों में जीवों की उत्कृष्ट स्थिति क्रमश: एक, तीन, सात, दस, सत्रह, बाईस तथा तैतीस सागरोपम की है। ७ – जम्बुद्वीप तथा लवणोदधि आदि शुभ नाम वाले असंख्यात द्वीप समुद्र मध्यलोक में हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003426
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2001
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
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