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दूसरा अध्याय
२६-विग्रहगति में कार्मण-योग ही होता है।
२७-~~-गति, अनुश्रेणि अर्थात् आकाशप्रदेशों की सरलरेखा के अनुसार होती है।
२८—मोक्ष में जाते हुए जीव की गति विग्रहरहित (बिना मोड़ की) होती है।
२९–संसारी आत्मा की गति अविग्रह और सविग्रह दोनों प्रकार की होती है। विग्रह = मोड़ चार से पहले अर्थात् तीन तक हो सकते हैं।
३०—अविग्रहगति केवल एक समय की होती है।
३१-विग्रहगति में एक अथवा दो समय तक जीव अनाहारक होता है।
३२-संसारी जीवों के सम्मूर्छन, गर्भ और उपपात ये तीन प्रकार के जन्म होते हैं।
३३–तीन प्रकार के जन्म वाले जीवों की सचित्त, शीत और संवृत-गुप्त तथा इनके प्रतिपक्षी अचित्त, उष्ण और विवृत—प्रकट तथा मिश्र अर्थात् सचित्ताचित्त, शितोष्ण एवं संवृतविवृत ये नौ योनियाँ होती हैं।
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