SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरा अध्याय १७ १६ -- द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय के भेद से प्रत्येक इन्द्रिय दो प्रकार की हैं। १७- दृश्यमान बाह्य आकृतिरूप 'निवृत्ति इन्द्रिय' और बाह्य तथा आन्तरिक पौद्गलिक शक्तिविशेष 'उपकरण इन्द्रिय' - इस प्रकार द्रव्येन्द्रिय के दो भेद हैं। १८ - लब्धि क्षयोपशमविशेष और उपयोग -- बोधरूप व्यापार, ये दो भेद भावेन्द्रिय के हैं। १९ - स्पर्शादि विषयों में इन्द्रियों का उपयोग होता है। २०-- - स्पर्शन त्वचा, रसना = जीभ, घ्राण नाक, चक्षु = आँख और श्रोत्र = कान, ये पाँच इन्द्रियाँ हैं। २१ – स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द, ये पूर्वोक्त अनुक्रम से पाँच इन्द्रियों के विषय हैं। = २२ श्रुतज्ञान, अनिन्द्रिय = मन का विषय है, मनोनिमित्तक है। २३ - पृथ्वीकाय से ले कर वायुकाय तक जीवों के केवल एक स्पर्शन- इन्द्रिय होती है। २४ – कृमि = कीडा, पिपीलिका = कीड़ी, भ्रमर = भौंरा और मनुष्य आदि के क्रम से एक एक इन्द्रिय अधिक होती है। २५ – संज्ञी जीव ही मन वाले होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003426
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year2001
Total Pages102
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy