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________________ ८०/ सत्य दर्शन जब तक आत्मा बाहर से प्रभावित होती है, तो समझना चाहिए कि अन्दर की शक्ति का झरना फूटा नहीं । और जब तक आन्तरिक शक्ति का झरना नहीं फूटता और प्रखर तेज पैदा नहीं होता, तब तक हमारी चेतना संसार को प्रभावित नहीं कर सकती है। अभिप्राय यह है कि जहाँ तक हमारी नीची दशाएँ हैं, हम बाहर से प्रभावित होते हैं और जब हमारी चैतन्य-शक्ति प्रबल हो जाती है, तो हम संसार को प्रभावित करने लगते हैं। तो फिर सच्चा सत्य और अहिंसा क्या है ? मैं शब्द बोल रहा हूँ, और एक ऐसा शब्द बोल रहा हूँ, जिस पर श्रोता ध्यान नहीं दे रहे हैं ? सत्य के साथ 'सच्चा' विशेषण लग रहा है और वह विशेष अभिप्राय से लगाया गया है। सच्चा सत्य कहने का मतलब यह है कि सत्य जो हो, वह भी सच्चा होना चाहिए। और जब तक सत्य सच्चा नहीं होता है, चेतना बाहर से प्रभावित होती रहती है। जैसे-हम सत्य को अपना कर चले, मन में और विचारों में सत्य को लेकर चले, किन्तु मालूम हुआ कि हमारी परिस्थितियाँ इन्कार कर रही हैं उस सत्य के लिए, और सामाजिक वातावरण या साम्प्रदायिक मान्यताएँ चारों ओर से इन्कार कर रही हैं उस सत्य के लिए, तो हम उस सत्य को किनारे डाल देते हैं और उस वातावरण या परिस्थिति के अनुरूप ढल जाते हैं। इसका निष्कर्ष यह निकला कि मन में जो सत्य आया था, वह सच्चा सत्य नहीं था। सच्चा सत्य आ जाता, तो चाहे सारा संसार ही हमारे विरोध में क्यों न खड़ा हो जाता, हमें उसकी परवाह न होती और हम उस सत्य के लिए ही डट कर अड़ जाते। कल मैंने कहा था कि सत्य-सत्य के लिए है, अर्थात् उस सत्य में दृढ़ता आनी चाहिए और ऐसी दृढ़ता आनी चाहिए कि बाह्य वातावरण से वह प्रभावित न हो सके, वरन् बाह्य वातावरण को ही प्रभावित कर सके। सत्य की उपासना करना ही जब सत्य की उपासना का उदेश्य बन जाएगा, तब लोभ, लालच, प्रतिष्ठा और स्वार्थ की कोई भी भावना उससे किनारा काटने के लिए नहीं बरगला सकेगी। वह सत्य बाह्य वातावरण से प्रभावित नहीं होगा और शब्दों की गलियों में से रास्ता नहीं निकालना पड़ेगा। उस समय सत्य अपने-आप में ही होगा और मन में से उसका मार्ग तय किया जाएगा। कोरा शब्दिक सत्य गलियाँ निकालने की फिराक में रहता है, यह बात मैं एक दिन कह चुका हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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