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________________ सत्य दर्शन/८१ 'सत्य भी सेव भी : एक बार कुछ बच्चों ने कहा-कहानी सुनिए । हम जब कि सुनाया करते हैं, तो कभी-कभी सुन भी लिया करते हैं। तो बच्चों ने अपने मनोरंजन के लिए कहानी सुनाई कहा-दो विद्यार्थी थे। वे बाजार में गए, तो एक फल वाले की दुकान पर सेव देख कर संकल्प-विकल्प में पड़ गए और दोनों ने सेव लेने की मत्रंणा की । मगर सेव खरीद कर लेने के लिए जेब में पैसा होना आवश्यक था। पैसों के बिना सेव नहीं मिल सकते थे। एक ने कहा-सेव कैसे मिल सकते हैं ? दूसरा बोला-कुछ हथकंड़े करेंगे और मिल जाएँगे। पहला-किन्तु गुरूजी ने कहा है-सत्य बोला करो। सत्य बोलते हैं, तो सेव नहीं पा सकते। दूसरा-मेरे पास एक कला है, जिससे सत्य भी रहेगा और सेव भी मिल जाएँगे। दोनों विद्यार्थी दुकान पर जाकर अलग-अलग खड़े हो गये। दुकान पर भीड़ थी और दुकानदार ग्राहकों के लेन-देन में लगा था। मौका पाकर एक ने सेव उठाया और दूसरे साथी की जेब में डाल दिया। इसके बाद दोनों ने परामर्श किया कि यहाँ से सच्चे बन कर चलना है, नहीं तो चोर कहलाएँगे। इसलिए तुम कहना मैंने सेव उठाया नहीं है और मैं कहूँगा कि मेरे पास सेव नहीं है। अब भीड़ हट चुकी थी यह दोनों खड़े थे। दुकानदार को कुछ सन्देह हुआ। उसने पूछा-तुमने सेव उठाया है ? जिसकी जेब में सेव था, उसने कहा-मैंने सेव उठाया ही नहीं, छुआ भी हो तो परमात्मा जो दण्ड दे, उसे भुगतने को तैयार हूँ। दुकानदार ने दूसरे से पूछा, तो वह बोला-सेव मेरे पास हो, तो मैं परमात्मा का दंड भुगतने को तैयार हूँ। आखिर दुकानदार ने कहा-अच्छी बात है, जाओ। दोनों ख़ुशी-खुशी आ गए और सेव खाने लगे। दूसरे ने कहा-देखी मेरी युक्ति ? सच भी बोले और सेव भी मिल गया। इसलिए मैं कहता हूँ कि दुनियाँ के पदार्थ भी मिल जाएँ और इन लड़कों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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