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________________ ४२/ सत्य दर्शन जाएगा। निष्कर्ष यह है कि वस्तुतः मनुष्य की दृष्टि ही एक साँचा है, जिसमें सत्य और असत्य की ढलाई होती है। इस प्रकार हमारे पास जीवन की वह कला है कि हम जहर को अमृत और अमृत को जहर बना सकते हैं। भगवान् महावीर के पास एक ओर गौतम, सुधर्मा और जम्बू आए और दूसरे सहस्रों साधक आए। उन्होंने भगवान के संसर्ग से अपने जीवन की चमक प्राप्त की। दूसरी ओर गोशालक भी आया। वह निरन्तर छह वर्षों तक उनके साथ रहा। पर क्या हुआ ? जब दुबारा मिलता है, तो भगवान् के शिष्यों को मारने के लिए तैयार होता है और दो साधुओं को भस्म कर देता है। इस प्रकार स्वयं भगवान गौतम आदि के लिए तो सत्य बने, किन्तु गोशालक और उसी सरीखे दूसरों के लिए असत्य बन गए ? गौतम आदि को भगवान् के द्वारा स्वर्ग और मोक्ष की राह मिली, जब कि उनसे विपरीत दृष्टि वालों को नरक की राह मिली। ___ आशय यह है कि वस्तु तो निमित्त-मात्र है। चाहे शास्त्र हो, वाणी हो अथवा व्यक्ति हो, सब निमित्त ही हैं । साक्षात् भगवान् भी हमारे लिए भगवान् हैं और अज्ञानदृष्टि के लिए भगवान् नहीं हैं। आपने भगवान् से अगर प्रकाश प्राप्त किया है, प्रेरणा प्राप्त की है, तो इसका कारण यही है कि आपको सम्यग्दृष्टि प्राप्त है। और दूसरों ने अगर उन्हीं से घृणा एवं द्वेष प्राप्त किया, तो इसका कारण उनकी मिथ्यादृष्टि है। इस प्रकार शास्त्र और भगवान् सब तटस्थ रहते हैं, किन्तु दुनियाँ के पास जैसा-जैसा कैमरा होता है, वैसी ही वैसी तस्वीर खिंचती रहती है। जिसके मन का कैमरा साफ है, उसके अन्दर साफ तस्वीर खिंचेगी और जिसका कैमरा मलीन तथा गलत रूप में है, उसके अन्दर भद्दी और बदसूरत तस्वीर खिंचेगी। अतएव कैमरा मुख्य है। अगर आपके मन का कैमरा ठीक है और सत्य की रोशनी ग्रहण कर सकता है, तो उस स्थिति में भगवान और शास्त्रों से भी सत्य की उपलब्धि हो सकेगी। आपको सर्वत्र सुगन्ध मिलेगी, दुर्गन्ध नहीं मिलेगी। इसके विपरीत, जिसके मन का कैमरा ठीक नहीं है और जिसे उस कैमरे को ठीक ढंग से प्रयोग करने की कला नहीं आई है, तो वह साधारण आदमी का भी गला घोंट देगा और आचार्य, महाचार्य या भगवान् भी क्यों न हों, उनका भी गला घोंट देगा। गोशालक ने छह वर्ष पर्यन्त सेवा में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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