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________________ सत्य दर्शन / ४१ करूँ?" इस प्रकार वह उसी क्षण सत्य को स्वीकार करने के लिए उद्यत हो जाएगा। इसका अभिप्राय यह है कि जहाँ सत्य की दृष्टि है, वहाँ सत्य है और जहाँ असत्य की दृष्टि है, वहाँ सत्य नहीं है। ___ जीवन के मार्ग में कहीं सत्य का और कहीं असत्य का ढेर नहीं लगा कि उसे बटोर कर ले आया जाए। सत्य और असत्य तो मनुष्य की अपनी दृष्टि में रहा हुआ है। इसी बात को भगवान् महावीर ने नन्दी-सूत्र में कहा है "एआणि मिच्छा-दिट्ठिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छासुयं, एआणि चेव सम्मदिट्ठिस्स सम्मत्तपरिग्गहियाई सम्मसुयं ।" कौन शास्त्र सच्चा है और कौन झूठा है, जब इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर विचार किया गया, तो एक बहुत बड़ा निरूपण हमारे सामने आया । इस सम्बन्ध में बड़ी गम्भीरता के साथ विचार किया गया है। शास्त्र अपने-आप में है तो सही, मगर अपना निरूपण वह आप नहीं करता। उसका निरूपण, ग्रहण करने वालों के द्वारा किया जाता है। ग्रहण करने वालों की भूमिकाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं और इस कारण उसका निरूपण भी भिन्न-भिन्न प्रकार से किया जाता है । इस निरूपण में विभिन्नता ही हो, सो बात नहीं, विरुद्धता भी देखी जाती है। शास्त्र के अक्षर वही हैं, फिर भी उनका अर्थ एक पूर्व की ओर जाता है, तो दूसरा पश्चिम की राह पकड़ता है। इसका कारण क्या है ? और ऐसी स्थिति में उस शास्त्र को सम्यकशास्त्र कहा जाए या मिथ्याशास्त्र कहा जाए ? साधक की सत्य दृष्टि : भगवान महावीर कहते हैं-अगर साधक की दृष्टि सत्यमयी है, वह सम्यग्दृष्टि है । और सत्य की रोशनी से उसने अपने मन के दरवाजे खोल रखे हैं, तो उसके लिए वह शास्त्र सम्यकशास्त्र है। इसके विपरीत, मिथ्यादृष्टि के लिए वही शास्त्र मिथ्याशास्त्र हो जाता है ; क्योंकि उसकी दृष्टि उसे मिथ्या रूप में ही ग्रहण करती है। इस प्रकार ग्रहण करने वाले की दृष्टि ही शास्त्र को सम्यक् या मिथ्या बना देती है। दृष्टि यदि सम्यक है, तो उसके द्वारा जो भी ग्रहण किया जाएगा, सम्यक ही होगा ; और यदि दृष्टि में मिथ्यात्त्व है, तो वह जो भी ग्रहण करेगी, सब मिथ्या के रूप में ही परिणत हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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