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________________ सत्य दर्शन / १६१ तू अपने अन्तर-नयन खोलकर जरा देख तो सही, वहाँ कितनी शक्तियाँ दबी हुई हैं ? सूर्य के प्रचण्ड प्रताप और प्रकाश को मेघ आच्छादित कर देते हैं, मगर वह नष्ट नहीं हो जाता है, वह अपने स्वरूप में ज्यों का त्यों बना रहता है। मेघों की आड़े आई हुई दीवारों को गिराकर हम देख सकें, तो हमें प्रकाश का पुँज दिखाई देगा। हमारी आत्मा सूर्य से भी अधिक प्रकाशशाली और प्रतापशाली है। मगर नाना प्रकार की भित्तियाँ मेघों की भाँति उसके प्रताप को रोके खड़ी हैं। इन दीवारों को गिराकर और मेघों के हृदय चीर कर अगर हम देख सकें, तो वह अनन्त और असीम शक्तियाँ खेलती हुई मिलेंगी। अन्ध " हे पुरुष ! तू सत्य के प्रकाश में विचरण करने को है । असत्य और ध-विश्वास के अंधकार में भटकना बन्द कर दे। सत्य की शरण ग्रहण कर। जिस दिन तू सत्य के श्रीचरणों में अपनी समस्त दुर्बलताओं को समर्पित कर देगा, तेरी शक्तियों का स्रोत असंख्य धाराओं में प्रवाहित होने लगेगा और तब तू अखण्ड मंगल का अधिकारी बन जाएगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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