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________________ १६०/ सत्य दर्शन हमारी जाति और समाज की यह स्थिति है। जीवन चारों ओर से भय से आक्रान्त बन गया है। सैंकड़ों तरह के वहम बुरी तरह छा गए हैं, कहते हैं, अमर बेल जिस वृक्ष पर छा जाती है, वह पनप नहीं पाता और थोड़े समय के पश्चात् सूख कर उखड़ जाता है। हमारे समाज के जीवन पर भी वहमों की अमर बेल छा गई है और इस कारण जीवन पनप नहीं रहा है, निःसत्त्व हो रहा है। हमारा जीवन सत्य के प्रति प्रगाढ़ आस्था से परिपूर्ण हो, तो वहमों को स्थान नहीं मिल सकता। सत्य का प्रकाशमान सूर्य जहाँ चमकता है, वहाँ वहम और अंध-विश्वास नहीं टिक सकते। सत्य का दिव्यं बल जीवन के हर मैदान में आगे बढ़ने का हौसला देता है, जीवन में शक्ति का अखण्ड स्रोत बहाता है। पर, हम उस सत्य को भूल गए हैं। इसी कारण जगह-जगह मत्था टेकते हैं और दबे-दबे से रहते हैं। तिलक लगाकर चलने वाले और पनिहारिन का शकुन देखने वाले क्या कभी भग्न-मनोरथ नहीं होते ? लूटिया डूबने को होती है, तो हजार शुभ शकुन भी उसे रोक नहीं सकते। अभिप्राय यह है कि यह सब चीजें जैन-धर्म के अनुकूल नहीं हैं और उस महान् सत्य के अनुकूल नहीं हैं, जिसे भगवान महावीर ने हमारे समक्ष उपस्थित किया है। जिसे भगवान् के कर्म-सिद्धान्त पर विश्वास होगा, वह इन सब वहमों से दूर ही रहेगा । भगवान् कहते हैं "सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला हवंति, दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णा फला हवंति।" "अगर तुमने अच्छे कर्म किए हैं, तो अच्छा फल मिलेगा, कोई ताकत नहीं कि तुम्हारा बाल भी बांका कर सके। और यदि बुरे कर्म किए हैं, तो उनका परिणाम भी बुरा ही होगा और उस परिणाम से बचाने की शक्ति किसी में नहीं है।" अरे मनुष्य ! तेरे भाग्य का प्रयत्न वह प्रयत्न है कि तू कहीं जा, मंगल और शक्ति पाएगा। तुझे कोई दुःख देने वाला नहीं है। तू कदम-कदम पर भयभीत क्यों होता है ? तुझे अपने महान् भाग्य और महान् पुरुषार्थ पर विश्वास रखना चाहिए। तेरी आत्मा अनन्त शक्ति से सम्पन्न है और समग्र संसार के देवी-देवताओं को चुनौती दे सकती है और उन्हें अपने चरणों में झुका सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003425
Book TitleSatya Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Vijaymuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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